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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
शल्य और युधिष्ठिर का युद्ध
अर्जुन बोले- “देखो, इस झाड़ी की आड़ में वह काफी देर तक छिप कर बैठा रहा था, क्योंकि उसके पांवों से बहा हुआ लहू इस धरती पर जम गया है। और देखो, यहाँ से लेकर उसके पैरों के निशान सरोवर के किनारे तक गये हैं। पानी पर जमी उस सेवार घास के आस-पास जो काली-काली सी वस्तु लहरा रही है वह दुर्योधन के सिर के बाल हैं।” भीमसेन की आंखे चमक उठीं। उत्साह में भर कर वे बोले- “ठीक कहते हैं। अर्जुन, वह दुर्योधन ही है। मैं अभी उसे खींचकर लाता हूँ।” युधिष्ठिर बोले- “अरे यदि वह जरा भी अपने को वीर मानता है तो मेरी इस बात पर तुरंत बाहर निकल आयेगा। और अगर वह कायर है तो तुम उसे पशु की तरह से फिर घसीट लाना।” दुर्योधन यह तीखी बातें सुन न सका तुरन्त ही उसने अपना सिर उठाया और पानी में खड़ा हो गया। वह बोला- “मैं कायर नहीं हूँ युधिष्ठिर केवल अपनी थकान उतारने के लिए मुझे कुछ देर विश्राम चाहिए।” भीमसेन तड़प कर बोले- “अरे दुष्ट, तेरे कारण हमें अब तक विश्राम नहीं मिला है और एक तू है कि अठारह दिनों की लडाई में ही थक गया? तुझे विश्राम चाहिए तो मैं अभी तुझे इसी जगह युद्ध में मार कर सदा के लिए सुला दूंगा।” ये बातें सुनकर दुर्योधन भी ताव में आ गया। पानी से बाहर निकलते हुए उसने कहा- “भीम अगर तेरा यह हौसला है तो मेरा भी कुछ हौसला अभी बाकी है। मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ कि तेरी तीखी बातों से मेरे शरीर की सारी थकान उतर गयी है और मुझमें नयी शक्ति आ गयी है। बोलो तुम लोगों में से कौन मुझसे लड़ेगा? या पांचों भाई मिलकर मुझसे लड़ेंगे? श्रीकृष्ण ने कहा- “सुयोधन और भीमसेन दोनों ने ही श्री बलराम से गदा युद्ध सीखा है। श्री बलराम तीर्थाटन से लौटते हुए इस समय संयोग से मेरे शिविर में ठहरे हुए हैं। मैं समझता हूँ कि दुर्योधन भाई के घावों का औषधि उपचार हो जाय। वे गीले वस्त्र उतार कर नये धारण कर लें तब युद्ध हो। अभी तो सूर्यास्त होने में बहुत समय बाकी है तब तक बलराम भैया भी यहाँ आ जायेंगे। उनकी आंखों के सामने उनके दोनों शिष्य अपना कौशल दिखायें और अपने जी के अरमान निकालें।” |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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