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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
दुर्योधन और कर्ण की सलाह
कर्ण ने बिफर कर कहा- “तुम्हारे बूढ़े मेरा जो मूल्यांकन कर गये हैं उसका जवाब तो मैं कल दे दूंगा पर मैं अपने वास्ते श्रीकृष्ण जैसा कुशल सारथी कहाँ से ले आऊं। अर्जुन की आधी जीत तो श्रीकृष्ण ही हैं। यह कहकर कर्ण हाथ मलने लगा।" दुर्योधन गम्भीर हो गया, उसने पूछा- “तुम्हारी राय में हमारे पक्ष में सबसे अच्छा अश्व-विशारद कौन है?” कर्ण सोच कर बोला- “श्रीकृष्ण से मजे की टक्कर लेने वाला एक ही राजा अपने यहाँ है। मगर, वह ऊंचे क्षत्रिय कुल वाला मुझ सूत पुत्र का रथ क्यों हांकने लगा।” दुर्योधन ने कहा- “तुम मद्रराज शल्य की बात कर रहे हो न? मैं जानता हूँ कि शल्य मामा बड़े अभिमानी हैं पर वे दिल के बड़े भोले भी हैं। मैं मनाऊंगा तो मान जायेंगे। आओ, हम लोग इसी समय उनसे मिलकर बात कर लें और वहीं तुम अपने कल के युद्ध की व्यूह रचना पर भी सोच विचार कर लेना।” यह कहकर दुर्योधन झटपट उठ खड़ा हुआ। कर्ण भी चलने के लिए तैयार हुआ लेकिन एकाएक ठहर कर बोला- “सुयोधन, मद्रनरेश से मिलने के पहले तनिक इस दृष्टि से भी विचार कर लो कि वे नकुल और सहदेव के सगे मामा हैं।” दुर्योधन ने कहा- “अरे तुम इस बात की चिन्ता मत करो, मित्र मैं शल्य मामा को सदा से जानता हूँ इसीलिए तो मैं उन्हें अपने पक्ष में पटा लाया। तुम देखना मैं बात की बात में तुम्हारे सामने ही मामा जी को मूंड़ लूंगा।” यह कहकर कर्ण का हाथ पकड़ कर वह खेमे से बाहर निकल आया। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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