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महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
अभिमन्यु का पराक्रम
अर्जुन के महावीर लाड़ले बेटे का मरण समाचार सुनकर पाण्डवों की छावनियों में हाहाकार मच गया। युधिष्ठिर फूट-फूट कर रोने लगे। वे बार-बार यही कहते थे कि अर्जुन आयेगा तो क्या कहेगा। इस बच्चे को चक्रव्यूह भेदने के लिए भेजना ही हमारे लिए अनुचित था, किन्तु उस समय न जाने क्यों मेरी मति पर पत्थर पड़ गये जो मैंने उस बच्चे की बात मान ली। हाय! महावीर मारने वाले वीरों को क्या तनिक भी अपने को लज्जा न आई होगी कि उन्होंने एक साथ मिल कर उसे मारा और अपनी वीरता को कलंकित किया। अभिमन्यु के घिरने का समाचार पाकर युधिष्ठिर आज उसकी रक्षा के लिए आगे अवश्य बढ़े थे, किन्तु जयद्रथ ने उन्हें बीच ही में अटका लिया था। इस समय शोकाकुल होकर धर्मराज युधिष्ठिर जयद्रथ को भी बार-बार कोस रहे थे। दिन भर की कठिन लड़ाई के बाद वीर संसप्तकों को भली-भाँति छकाकर अर्जुन श्रीकृष्ण के साथ जब अपनी छावनी को लौटने लगे तो सहसा उनकी बांयी आंख फड़क उठी और मन बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के घबराने लगा। कुछ न समझ पाने से वे मौन हो गये। रथ हांकते हुए श्रीकृष्ण ने कहा- “अर्जुन, इस तरह उदास क्यों बैठे हो?” अर्जुन बोले- “हे कृष्ण, मैं भी यह नहीं जानता कि यह गहरी उदासी मुझ पर एकाएक क्यों छा गई है। बायीं आंख फड़क रही है और वज्रों की चोटे सहने वाला मेरा कलेजा इस समय धक-धक कर रहा है। मन में अमंगल के विचार आ रहे हैं।” श्रीकृष्ण बोले- “हे सखा, थकान के कारण कभी-कभी मनुष्य के कोई-कोई अंग अपने आप ही फड़क उठा करते हैं। थकान में ही कभी-कभी अकारण उदासी भी आ जाया करती है। तुम चिन्ता न करो। धर्मराज युधिष्ठिर आदि सब भाई बन्धु सकुशल होंगे।”
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टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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