महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
महानाश की तैयारी
कर्ण की इन जली-कटी बातों से भीष्म पितामह को बड़ा क्रोध आ गया। उन्होंने कर्ण को खूब फटकारा। बात बिगड़ती देखकर दुर्योधन विनय पूर्वक बोला- “हे पितामह! इस महासंकट के अवसर पर आप इन बातों को भूल जायें। मेरा भला सोचें। आप दोनों ही महावीर हैं, आप दोनों ही मेरा कार्यसिद्ध करने में हर तरह से समर्थ है। इसलिए मेरी प्रार्थना स्वीकार करके आप इस आपसी झगड़े को शांत कीजिए। बीच में केवल एक ही रात बाकी है। कल सबेरे से युद्ध छिड़ जायेगा। ऐसे कठिन समय में घर की फूट हमारे लिए अकल्याणकारी साबित होगी।” दुर्योधन के इस विनय से पितामह का क्रोध शान्त हुआ। असल बात यह थी कि पितामह को कर्ण के पैदा होने का सारा हाल मालूम था। अपनी एक भतीज बहू के कुंवारेपन की सन्तान को वह सह नहीं पाते थे। कर्ण जबकि उनके पोते अर्जुन से द्वेष रखता था इसलिए वे उसे सह नहीं पाते थे। अर्जुन उनका पोता था और कर्ण एक पाप की संतान। मन की यह बात ही उन्हें कर्ण के विरुद्ध बनाती थी। उनका यह भी ख्याल था कि अगर दुर्योधन को कर्ण न मिला होता तो वह शायद पाण्डवों से लड़ने में घबड़ाता। भीष्म पितामह महापुरुष होते हुए भी न्याय और मोह की खींचातान में फंस गये। यही हाल द्रोणाचार्य का भी था। जब सारी तैयारियों हो गयीं तो दुर्योधन ने उलूक नामक एक बुद्धू किस्म के नौकर को शान्ति दूत बनाकर पाण्डवों में भेजा। उलूक ने जाकर युधिष्ठिर से कहा कि हमारे महाराज दुर्योधन बड़े उदार हैं उन्होंने कहलाया है कि आप लोग उनसे लड़ाई का विचार छोड़ दें। उन्होंने कहा है कि हमारे वीरों के सामने आपके सिपाही भुट्टों की तरह भुन जायेंगे और आप पांचों भाइयों की बोटियां-बोटियां काट डाली जायेंगी। युधिष्ठिर ने यह सुना और मुस्करा उठे, उन्होंने भी उलूक को ऐसा ढोंग भरा उत्तर दिया, कहा- "हे उलूक, तुम जाकर अपने मालिकों से कहो कि पाण्डवों को अपने कौरव भाइयों की बड़ी चिन्ता है जैसे भड़भूजे के भाड़ में लइया, चने भूजे जाते हैं वैसे ही हमसे लड़कर हमारे कौरव भाई भुन जायेंगे। हे उलूक! तुम दुर्योधन से यह भी कहना कि शान्ति का यह बगुला भक्ति वाला प्रस्ताव उन्होंने तुम्हें भेजा, आप ही यहाँ चले आते। तुम तो केवल नाम के ही उलूक हो पर दुर्योधन के तो हर काम से उल्लूपन साबित होता है।" उलूक से यह बातें सुनकर दुर्योधन और उसके भाई तप उठे। फिर उन्होंने लड़ाई के लिए कुछ नियम बनाये, जिस पर दोनों पक्षों ने विचार करके समझौता किया। शर्तों में सबसे बड़ी बात यह थी कि हर दिन सूर्यास्त के बाद लड़ाई समाप्त हो जाया करेगी और उसके बाद रात भर दोनों पक्षों के लोग आपस में दोस्ती और भाईचारे का नाता निबाहेंगे। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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