महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
महानाश की तैयारी
कर्ण बोला- "मेरा कहा न तो पितामह मानेंगे और न अर्जुन के गुरु आचार्य द्रोण। तुम पहले बुड्ढ़ों को बस में करो तो मैं आगे कदम उठाऊं। क्योंकि इन बुड्ढ़ों के कारण कोई भी श्रेष्ठ कुल का क्षत्रिय सरदार मेरी बातें नही मानेगा।" जब यह खींचतान चल रही थी तभी पाण्डव पक्ष से यह खबर आयी कि अर्जुन ने मोह और कर्तव्य की लड़ाई में कर्तव्य की जीत साबित करने के लिए निर्मम भाव से भीष्म पितामह तक का वध करने की प्रतिज्ञा कर ली है। यह सुनकर दुर्योधन ने सोचा कि भीष्म पितामह को सेनापति बनने के लिए राजी करने का यह उपयुक्त अवसर आ गया। यह सोचकर दुर्योधन अपने भाइयों और कर्ण आदि के साथ पितामह के पास पहुँचे और उन्हें अर्जुन की प्रतिज्ञा सुनाकर कहा- "हे पितामह! इस युद्ध का पहला सेनापति पाण्डव ने अपने साले को बनाया है और हम यह चाहते हैं कि कुरु वंश के वयोवृद्ध और सबसे अधिक पूज्य हमारे पितामह अर्थात आप ही हमारे सेनापति बनें।" सुनकर भीष्म ने एक क्षण तक अपने मन में विचार किया फिर बोले- “ठीक है, मैं तुम्हारे प्रस्ताव को स्वीकार करता हूँ।" यह कह कर अपने मातहत सेनापतियों का चुनाव करना आरंभ कर दिया और इस चुनाव में उन्होंने कर्ण का दर्जा ऊंचा न माना। कर्ण इससे तप उठा बोला- "पितामह आप बिना किसी कारण के ही मुझसे द्वेष रखते हैं, जब होता है तभी आप मेरे ऊपर व्यंग्य बाण बरसाते हैं। आपने मुझे छोटा दर्जा दिया है, इसलिए अब हमारी सेना के सब लोग मुझे उसी हैसियत का योद्धा समझेंगे। हे पितामह! मैं आपकी कुटिल चालों को खूब समझता हूँ। मैं जानता हूँ कि आप मेरे मित्र दुर्योधन के साथ छल कर रहे हैं। आप दुर्योधन के शत्रु हैं और पाण्डवों को प्यार करते हैं। सब जानते हैं कि मैं अकेला ही पाण्डवों की सारी सेना को तहस-नहस करके उनके पांचों भाइयों का नाश कर सकता हूँ। इसलिए आपने जान-बूझकर मुझे लड़वइयों की पिछली पंक्ति में रखा है।" पितामह से यह कह कर कर्ण दुर्योधन की ओर घूमा और बोला- "हे मित्र! हर तरह से तुम्हारा भला चाहने पर भी मैं तुम्हारे पितामह की मातहती में कदापि नहीं लडूंगा। पहले इन बुड्ढों की पोल खुल जाने दो। भीष्म पितामह जब युद्ध में मारे जायेंगे तब मैं यह दिखला दूंगा कि तुम्हारा मित्र और शुभचिन्तक यह कर्ण कितना शक्तिशाली है।" |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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