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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
क्या ईश्वर और धर्म बिना काम चलेगा?
चिकित्सकों के अनेक उपचारा करने पर भी रोगी मरते दिखते हैं। अत:-
अतः साधन-सम्पन्नों को भी श्रीभगवान का आश्रयण आवश्यक है। फिर तो जो साधन-विहीन हैं, उनके लिये तो सिवा भगवान के और सहारा ही क्या है? जैसे एक वीतराग तत्त्वनिष्ठ कृतकृत्य केवल भगवान के ही सहारे रहता है, उसके सम्पूर्ण योगक्षेम का भगवान ही निर्वाह करते हैं।
अनन्य भावना से भगवान की आराधना में तत्पर प्राणियों को अप्राप्त अभीष्ट-प्राप्तिरूप योग और प्राप्त रक्षणरूप क्षेम श्रीभगवान ही पूरा करते हैं। वैसे ही साधनविहीन विश्वासी आर्त्त-अर्थार्थी की भी एकमात्र भगवान ही सहारा है। अतः उसके भी योगक्षेम को भगवान ही वहन करते हैं। परन्तु भारत की स्थिति तो आज उससे भी अधिक चिन्तनीय है। वह तो आज आत्माराम कृतकृत्य नहीं, निष्काम मुमुक्षु नहीं, साधन-सम्पन्न आर्त्त एवं अर्थार्थी नहीं, इतने पर भी भगवद्विश्वासी नहीं अर्थात आर्त्त-अर्थार्थी होने पर भी आर्त्ति निवृत्ति और अर्थ प्राप्ति के लिये अपेक्षित साधनों से भी रहित है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भा. प्रह्लादस्तुतिः 7/9/19
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