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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
किरातिनियों का स्मररोग
श्रीश्यामसुन्दर व्रजेन्द्रनन्दन की कोटि-कोटि कन्दर्प-दलन पटीयसी मनोहारिणी छवि निहारने के लिये सब प्रपंच भूल जाय, व्याकुलता बढ़ती जाय, मन तड़फड़ाने लगे, अस्वास्थ्य हो जाय, धैर्य छूट जाय, तभी उसका महत्त्व है, तभी सफलता है। यदि कहीं यह संतोष हो कि धीरे-धीरे करते चलो, धैर्य रखो, तो फिर अनुचित है। यहाँ तो जितनी अधिक व्याकुलता, व्यग्रता, बेचैनी बढ़ेगी, उतनी ही अधिक अनुराग में उत्कृष्टता आयेगी। सब अधिकाधिक व्याकुलता बस का होना ही उस मति का मूल्य है। पुत्र, धन, दारा, गेह, नेह के न मिलने से अधैर्य तो सभी को होता है और होना स्वाभाविक है, परन्तु भगवदर्थ अधैर्य, व्याकुलता, अस्वास्थ्य होना बहुत ऊँची बात है। अतः जो लोक में दूषण है, वही यहाँ भूषण है। भगवत सम्बन्ध से तृष्णा, काम, लोभ सब भूषण हैं। भगवच्चरण सरोरुहसंमिलन के लिये भावुक का मनोमिलिन्द तड़फड़ाये, उसके लोकोत्तर माधुर्य पराग में लाम्पट्य दिखलाये, तो यह उसका महाभूषण है। जिस वृत्ति विशेष में कामिनी संमिलन के लिये कामुक उत्कण्ठित या व्याकुल हो उठता है, वही स्मर है। ऐसे ही जिस वृत्ति विशेष से व्रजदेवियों को श्रीकृष्ण परमात्मा के संमिलन के लिये उत्कट उत्कण्ठा और व्याकुलता है, वही स्मर या लोकोत्तर प्रणय है। पर, बात यह है कि किसी भी वस्तु का महत्त्व उसके स्वरूप, विषय और आश्रय के महत्त्व से होता है। श्रीकृष्ण का चौर्य आश्रय से उत्तम हो सकता है, परन्तु स्वरूप से वह निन्द्य है। आश्रय की सरसता से आश्रित में सरसता, उत्तमता आ सकती है। क्षीरसागर की लहरी या तरंग क्षार होगी और क्षीरसागर की लहरें क्षीरमयी मधुर होंगी। ऐसे ही भगवदाश्रित वस्तु तदात्मक होगी। यहाँ के चौर्य का महत्त्व आश्रय की महत्ता से है, अत: भक्तों के द्वारा यह खूब गाया गया। साधारण पुरुषों का चौर्य गाया नहीं जाता, प्रत्युत किसी का चौर्य ज्ञात होने से उसके साथ सर्वविध सम्बन्ध त्याग हो जाता है। चोरी के साथ झूठ भी लगा था, बिना उसके चोरी का काम ही नहीं चल सकता। एक बार बालकृष्ण ने मिट्टी खायी। शिशु सखाओं ने व्रजेन्द्रगेहिनी यशोदा से शिकायत कर दी- “मैया! आज लाला ने मिट्टी खायी है।” बाल लीलोत्सव मुग्ध, परम भाग्यवती यशोदा ने कृत्रिम कोप से श्रीश्यामसुन्दर नन्दनन्दन के सुकोमल छोटे-छोटे दोनों हाथों को अपने एक हाथ में पकड़ लिया और दूसरे हाथ में छड़ी लेकर बोलीं- “क्यों लाला, तूने आज मिट्टी खायी?” भगवान डर गये, सोचा ‘अब मार पड़ेगी, इसलिये झूठ बोल दो।’ कहने लगे- “माँ! मैंने मिट्टी नहीं खायी” “नाहं भक्षितवानम्ब।” यशोदा ने घुड़कर कहा- “तुम्हारे ये सखा लोग जो कह रहे हैं?” तब तो कहने लगे- “सर्वे मिथ्याभिशंसिनः” “ये सब झूठ बोल रहे हैं।” भगवान ने यशोदा को विश्वास दिलाने और अपनी सफाई पेश करने के लिये कहा- “यदि तुझे विश्वास नहीं तो इन सबके सामने मेरा मुख देख ले” “समक्षं पश्य मे मुखम्।” |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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