भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
भक्तिरसामृतास्वादन
कभी श्रीमधुसूदन सरस्वती श्रीवृन्दावनधाम पधारे। वहाँ एक ब्राह्मण बहुत दिन से भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिये तप कर रहा था। उसे स्वप्न में भगवान ने आदेश दिया कि मधुसूदन सरस्वती के पास जाओ, वहाँ दर्शन होगा। वह ब्राह्मण श्रीमधुसूदन सरस्वती के पास जाकर देखता है कि भगवान उनकी भिक्षा में से अन्न निकालकर खा रहे हैं। उसने स्वयं उनकी भिक्षा में से अन्न निकालकर खाना चाहा, पर श्रीमधुसूदन सरस्वती ने मना किया कि ‘संन्यासी का अन्न निषिद्ध है।’ उस ब्राह्मण ने कहा कि ‘मैं तो भगवान का प्रसाद लेना चाहता हूँ, संन्यासी का अन्न नहीं।’ इनके द्वारा बनाये हुए निम्नलिखित ग्रन्थ हैं-(1) अद्वैतसिद्धि, (2) वेदान्तकल्पलता, (3) अद्वैततत्त्वरक्षण, (4) श्रीमद्भागवत टीका, (5) श्रीमद्भगवद्गीता व्याख्या गूढार्थ दीपिका, (6) संक्षेप शारीरिक व्याख्या सारसंग्रह, (7) सिद्धान्तबिन्दु, (8) शिवमहिम्नस्तोत्र की हरिहरपरा टीका, (9) वोपदेवकृत हरिलीला की टीका, (10) भगवद्भक्ति रसायन। इस अन्तिम ग्रन्थ के प्रथम उल्लास की टीका स्वयं ग्रन्थकार ने की है। यद्यपि शेष दो उल्लासों को टीका भी अन्य विद्वानों ने लिखी हैं, किन्तु ग्रन्थकार सिद्धान्त के भक्त द्वारा टीका लिखी जाय, इसकी आवश्यकता थी। भगवान भूतभावन विश्वनाथ की कृपा से वेदान्तितिलक श्रीदामोदर शास्त्री ने विविध शास्त्रों के तात्पर्य को अभिव्यक्त करने वाली, ग्रन्थकार सिद्धान्त का सर्वथा अनुसरण करने वाली, “भक्ति रसस्त्रोतस्विनी” नामक टीका और टिप्पणी बनायी। वह विद्वानों को आनन्दित करने वाली होगी, ऐसी आशा है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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