भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
भक्तिरसामृतास्वादन
आहार्यज्ञान द्वारा व्यामोहप्रसक्ति की कल्पना नहीं की जा सकती, क्योंकि भगवान सत्य के भी सत्य हैं। जैसे अराजा को राजा बनाने वाला राजराज कहा जाता है, वैसे ही भगवान असत्य को सत्य बनाते हैं। अर्थात पारमार्थिक सत्य की अपेक्षा किंचित् न्यूनसत्ता के एक और सत्य माना जाता है, जो भजनोपयोगी है। अतः पारमार्थिक अद्वैत सिद्धान्त ज्यों-का-त्यों रहता है। कहा भी है कि पारमार्थिक अद्वैत ज्ञान होने पर यदि भजनोपयोगी द्वैत मानकर भगवान में भक्ति की जाती है, तो ऐसी भक्ति सैकड़ों मुक्तियों से भी कहीं बहुत अच्छी है। प्रत्यक्चैतन्याभिन्न परबह्म का विज्ञान होने के पहले द्वैतबन्धन का कारण है, किन्तु विज्ञान के बाद भेद, मोह के निवृत्त हो जाने पर भक्ति के लिये भावित द्वैत, अद्वैत से भी बहुत अच्छा है-
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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