धृतराष्ट्र द्वारा भीम की लोहमयी प्रतिमा भंग करना

महाभारत स्त्री पर्व में जलप्रदानिक पर्व के अंतर्गत बारहवें अध्याय में धृतराष्ट्र द्वारा भीम की लोहमयी प्रतिमा को भंग करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

धृतराष्ट्र द्वारा भीम की लोहमयी प्रतिमा भंग करना

भरतनन्दन! धर्मराज को हृदय से लगाकर उन्हे सान्तवना दे धृतराष्ट्र भीम को इस प्रकार खोजने लगे, मानो आग बनकर उन्हें जला डालना चाहते हों। उस समय उनके मन में दुर्भावना जाग उठी थी। शोकरूपी वायु से बढ़ी हुई उनकी क्रोधमयी अग्नि ऐसी दिखायी दे रही थी, मानो वह भीमसेनरूपी वन को जलाकर भस्‍म कर देना चाहती हो। भीमसेन के प्रति उनके सुगम अशुभ संकल्प को जानकर श्रीकृष्ण ने भीमसेन को झटका देकर हटा दिया और दोनों हाथों से उनकी लोहमयी मूर्ति धृतराष्ट्र के सामने कर दी। महाज्ञानी और परम बुद्धिमान भगवान श्रीकृष्ण को पहले से ही उनका अभिप्राय ज्ञात हो गया था, इसलिये उन्होंने वहाँ यह व्‍यवस्‍था कर ली थी। बलवान राजा धृतराष्ट्र उस लोहमय भीमसेन को ही असली भीम समझा और उसे दोनों बाँहों से दबाकर तोड़ डाला। राजा धृतराष्ट्र में दस हज़ार हाथियों का बल था तो भी भीम की लोहमयी प्रतिमा को तोड़कर उनकी छाती व्‍यथित हो गयी और मुँह से खून निकलने लगा। वे उसी अवस्‍था में खून से भीगकर पृथ्‍वी पर गिर पड़े, मानो ऊपर की डाली पर खिले हुए लाल फूलों से सुशोभित पारिजात का वृक्ष धराशायी हो गया हो। उस समय उनके विद्वान सारथि गवल्यणपुत्र संजय ने उन्हें पकड़कर उठाया और समझा-बुझाकर शान्त करते हुए कहा- ‘आपको ऐसा नहीं करना चाहिये’।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 11 श्लोक 1-24

सम्बंधित लेख

महाभारत स्त्री पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जलप्रदानिक पर्व

धृतराष्ट्र का दुर्योधन व कौरव सेना के संहार पर विलाप | संजय का धृतराष्ट्र को सान्त्वना देना | विदुर का धृतराष्ट्र को शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर का शरीर की अनित्यता बताते हुए शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर द्वारा दुखमय संसार के गहन स्वरूप और उससे छूटने का उपाय | विदुर द्वारा गहन वन के दृष्टांत से संसार के भयंकर स्वरूप का वर्णन | विदुर द्वारा संसाररूपी वन के रूपक का स्पष्टीकरण | विदुर द्वारा संसार चक्र का वर्णन | विदुर का संयम और ज्ञान आदि को मुक्ति का उपाय बताना | व्यास का धृतराष्ट्र को समझाना | धृतराष्ट्र का शोकातुर होना | विदुर का शोक निवारण हेतु उपदेश | धृतराष्ट्र का रणभूमि जाने हेतु नगर से बाहर निकलना | कृपाचार्य का धृतराष्ट्र को कौरव-पांडवों की सेना के विनाश की सूचना देना | पांडवों का धृतराष्ट्र से मिलना | धृतराष्ट्र द्वारा भीम की लोहमयी प्रतिमा भंग करना | धृतराष्ट्र के शोक करने पर कृष्ण द्वारा समझाना | कृष्ण के फटकारने पर धृतराष्ट्र का पांडवों को हृदय से लगाना | पांडवों को शाप देने के लिए उद्यत हुई गांधारी को व्यास द्वारा समझाना | भीम का गांधारी से क्षमा माँगना | युधिष्ठिर द्वारा अपना अपराध मानना एवं अर्जुन का भयवश कृष्ण के पीछे छिपना | द्रौपदी का विलाप तथा कुन्ती एवं गांधारी का उसे आश्वासन देना

स्त्रीविलाप पर्व

| गांधारी का कृष्ण के सम्मुख विलाप | दुर्योधन व उसके पास रोती हुई पुत्रवधु को देखकर गांधारी का विलाप | गांधारी का अपने अन्य पुत्रों तथा दु:शासन को देखकर विलाप करना | गांधारी का विकर्ण, दुर्मुख, चित्रसेन तथा दु:सह को देखकर विलाप | गांधारी द्वारा उत्तरा और विराटकुल की स्त्रियों के विलाप का वर्णन | गांधारी द्वारा कर्ण की स्त्री के विलाप का वर्णन | गांधारी का जयद्रथ एवं दु:शला को देखकर कृष्ण के सम्मुख विलाप | भीष्म और द्रोण को देखकर गांधारी का विलाप | भूरिश्रवा के पास उसकी पत्नियों का विलाप | शकुनि को देखकर गांधारी का शोकोद्गार | गांधारी का अन्यान्य वीरों को मरा देखकर शोकातुर होना | गांधारी द्वारा कृष्ण को यदुवंशविनाश विषयक शाप देना

श्राद्ध पर्व

| युधिष्ठिर द्वारा महाभारत युद्ध में मारे गये लोगों की संख्या और गति का वर्णन | युधिष्ठिर की अज्ञा से सबका दाह संस्कार | स्त्री-पुरुषों का अपने मरे हुए सम्बंधियों को जलांजलि देना | कुन्ती द्वारा कर्ण के जन्म का रहस्य प्रकट करना | युधिष्ठिर का कर्ण के लिये शोक प्रकट करते हुए प्रेतकृत्य सम्पन्न करना

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