पांडवों का धृतराष्ट्र से मिलना

महाभारत स्त्री पर्व में जलप्रदानिक पर्व के अंतर्गत बारहवें अध्याय में पांडवों के धृतराष्ट्र से मिलने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

पांडवों का धृतराष्ट्र से मिलना

वैशम्पायन जी कहते हैं- महाराज जनमेजय! समस्त सेनाओं का संहार हो जाने पर धर्मराज युधिष्ठिर ने जब सुना कि हमारे बूढ़े ताऊ संग्राम में मरे हुए वीरों का अन्तयेष्टिकर्म कराने के लिये हस्तिनापुर चल दिये हैं, तब वे स्‍वयं पुत्रशोक से आतुर हो पुत्रों के ही शोक में डूबकर चिन्तामग्न हुए राजा धृतराष्ट्र के पास अपने सब भाइयों के साथ गये। उस समय दशार्हकुलनन्दन वीर महात्मा श्रीकृष्ण, सात्यकि और युयुत्सु भी उनके पीछे-पीछे गये। अत्यन्त दु:ख से आतुर और शोक से दुबली हुई द्रौपदी ने भी वहाँ आयी हुई पंचाल- महिलाओं के साथ उनका अनुसरण किया। भरतश्रेष्ठ! गंगातट पर पहुँचकर युधिष्ठिर ने कुररी की तरह आर्तस्‍वर से विलाप करती हुई स्त्रियों के कई दल देखे। वहाँ पाण्डवों के प्रिय और अप्रिय जनों के लिय हाथ उठाकर आर्तस्‍वर से रोती और करुण क्रनदन करती हुई सहस्रों महिलाओं ने राज युधिष्ठिर को चारों ओर से घेर लिया। वे बोलीं– ‘अहो! राजा की वह धर्मज्ञता और दयालुता कहाँ चली गयी कि इन्होंने ताऊ, चाचा, भाई, गुरुपुत्रों और मित्रों का भी वध कर डाला। महाबाहो! द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म और जयद्रथ का भी वध करके आपके मन की कैसी अवस्‍था हुई? भरतवंशी नरेश! अपने ताऊ, चाचा और भाइयों को, दुर्जय वीर अभिमन्यु को तथा द्रौपदी के सभी पुत्रों को न देखने पर इस राज्‍य से आपका क्‍या प्रयोजन है?’ धर्मराज महाबाहु युधिष्ठिर ने कुररी की भाँति क्रन्दन करती हुई स्त्रियों के घेरे को लाँघकर अपने ताऊ धृतराष्ट्र को प्रणाम किया। तत्पश्चात् सभी शुत्रुसूदन पाण्डवों ने धर्मानुसार ताऊ को प्रणाम करके अपने नाम बताये। पुत्रवध से पीड़ित हुए पिता ने शोक से व्‍याकुल हो आने पुत्रों का अन्त करने वाले पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर को हृदय से लगाया; परंतु उस समय उनका मन प्रसन्न नहीं था।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 11 श्लोक 1-24

सम्बंधित लेख

महाभारत स्त्री पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जलप्रदानिक पर्व

धृतराष्ट्र का दुर्योधन व कौरव सेना के संहार पर विलाप | संजय का धृतराष्ट्र को सान्त्वना देना | विदुर का धृतराष्ट्र को शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर का शरीर की अनित्यता बताते हुए शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर द्वारा दुखमय संसार के गहन स्वरूप और उससे छूटने का उपाय | विदुर द्वारा गहन वन के दृष्टांत से संसार के भयंकर स्वरूप का वर्णन | विदुर द्वारा संसाररूपी वन के रूपक का स्पष्टीकरण | विदुर द्वारा संसार चक्र का वर्णन | विदुर का संयम और ज्ञान आदि को मुक्ति का उपाय बताना | व्यास का धृतराष्ट्र को समझाना | धृतराष्ट्र का शोकातुर होना | विदुर का शोक निवारण हेतु उपदेश | धृतराष्ट्र का रणभूमि जाने हेतु नगर से बाहर निकलना | कृपाचार्य का धृतराष्ट्र को कौरव-पांडवों की सेना के विनाश की सूचना देना | पांडवों का धृतराष्ट्र से मिलना | धृतराष्ट्र द्वारा भीम की लोहमयी प्रतिमा भंग करना | धृतराष्ट्र के शोक करने पर कृष्ण द्वारा समझाना | कृष्ण के फटकारने पर धृतराष्ट्र का पांडवों को हृदय से लगाना | पांडवों को शाप देने के लिए उद्यत हुई गांधारी को व्यास द्वारा समझाना | भीम का गांधारी से क्षमा माँगना | युधिष्ठिर द्वारा अपना अपराध मानना एवं अर्जुन का भयवश कृष्ण के पीछे छिपना | द्रौपदी का विलाप तथा कुन्ती एवं गांधारी का उसे आश्वासन देना

स्त्रीविलाप पर्व

| गांधारी का कृष्ण के सम्मुख विलाप | दुर्योधन व उसके पास रोती हुई पुत्रवधु को देखकर गांधारी का विलाप | गांधारी का अपने अन्य पुत्रों तथा दु:शासन को देखकर विलाप करना | गांधारी का विकर्ण, दुर्मुख, चित्रसेन तथा दु:सह को देखकर विलाप | गांधारी द्वारा उत्तरा और विराटकुल की स्त्रियों के विलाप का वर्णन | गांधारी द्वारा कर्ण की स्त्री के विलाप का वर्णन | गांधारी का जयद्रथ एवं दु:शला को देखकर कृष्ण के सम्मुख विलाप | भीष्म और द्रोण को देखकर गांधारी का विलाप | भूरिश्रवा के पास उसकी पत्नियों का विलाप | शकुनि को देखकर गांधारी का शोकोद्गार | गांधारी का अन्यान्य वीरों को मरा देखकर शोकातुर होना | गांधारी द्वारा कृष्ण को यदुवंशविनाश विषयक शाप देना

श्राद्ध पर्व

| युधिष्ठिर द्वारा महाभारत युद्ध में मारे गये लोगों की संख्या और गति का वर्णन | युधिष्ठिर की अज्ञा से सबका दाह संस्कार | स्त्री-पुरुषों का अपने मरे हुए सम्बंधियों को जलांजलि देना | कुन्ती द्वारा कर्ण के जन्म का रहस्य प्रकट करना | युधिष्ठिर का कर्ण के लिये शोक प्रकट करते हुए प्रेतकृत्य सम्पन्न करना

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