विदुर का संयम और ज्ञान आदि को मुक्ति का उपाय बताना

महाभारत स्त्री पर्व में जलप्रदानिक पर्व के अंतर्गत सातवें अध्याय में विदुर का रथ के रूपक द्वारा संयम और ज्ञान आदि को मुक्ति का उपाय बताने का वर्णन किया गया है, जो इस प्रकार है[1]

संयम और ज्ञान आदि को मुक्ति का उपाय बताना

विदुर कहते हैं- भारत! साधु पुरुष को चाहिये कि वह अपने मन को वश में करके ज्ञान रुपी महान औषधि प्राप्‍त करे, जो परम दुर्लभ है। उससे अपने बड़े-से-बड़े दु:खों की चिकित्‍सा करे। उस ज्ञान रुपी औषधि से दु:ख रुपी महान व्‍याधि का नाश कर डाले। पराक्रम, धन, मित्र और सुहृद भी उस तरह दु:ख से छुटकारा नहीं दिला सकते, जैसा ‍कि दृढ़तापूर्वक संयम में रहने वाला अपना मन ‍दिला सकता है। भरतनन्‍दन! इसलिये सर्वत्र मैत्री भाव रखते हुए शील प्राप्‍त करना चाहिये। दम, त्‍याग और अप्रमाद–ये तीन परमात्मा के धाम में ले जाने वाले घोड़े हैं। जो मनुष्य शीलरुपी लगाम को पकड़ कर इन तीनों घोड़ों से जुते हुए मन रुपी रथ पर सवार होता है, वह मृत्‍यु का भय छोड़कर ब्रह्मलोक में चला जाता है।

भूपाल! जो सम्पूर्ण प्राणियों को अभयदान देता है, वह भगवान विष्णु के अविनाशी परमधाम में चला जाता है। अभयदान से मनुष्य जिस फल को पाता है, वह उसे सहस्रों यज्ञ और नित्‍य प्रति उपवास करने से भी नहीं मिल सकता है। भारत! यह बात निश्चित रुप से कही जा सकती है कि प्राणियों को अपने आत्‍मा से अधिक प्रिय कोई भी वस्तु नहीं है; इसीलिये मरना किसी भी प्राणी को अच्‍छा नहीं लगता; अत: विद्वान पुरुष को सभी प्राणियों पर दया करनी चाहिये। जो मूढ़ नाना प्रकार के मोह में डूबे हुए हैं, जिन्‍हें बुद्धि के जाल ने बाँध रखा है और जिनकी दृष्टि स्थूल है, वे भिन्न-भिन्न योनियों में भटकते रहते हैं। राजन! महाप्राज्ञ! सूक्ष्मदर्शी ज्ञानीपुरुष सनातन ब्रह्म को प्राप्‍त होते हैं, ऐसा जानकर आप अपने मरे हुए सगे-सम्बन्धियों का और्ध्‍वदैहिक संस्कार कीजिये। इसी से आप को उत्तम फल की प्राप्ति होगी।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 7 श्लोक 20-29

सम्बंधित लेख

महाभारत स्त्री पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जलप्रदानिक पर्व

धृतराष्ट्र का दुर्योधन व कौरव सेना के संहार पर विलाप | संजय का धृतराष्ट्र को सान्त्वना देना | विदुर का धृतराष्ट्र को शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर का शरीर की अनित्यता बताते हुए शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर द्वारा दुखमय संसार के गहन स्वरूप और उससे छूटने का उपाय | विदुर द्वारा गहन वन के दृष्टांत से संसार के भयंकर स्वरूप का वर्णन | विदुर द्वारा संसाररूपी वन के रूपक का स्पष्टीकरण | विदुर द्वारा संसार चक्र का वर्णन | विदुर का संयम और ज्ञान आदि को मुक्ति का उपाय बताना | व्यास का धृतराष्ट्र को समझाना | धृतराष्ट्र का शोकातुर होना | विदुर का शोक निवारण हेतु उपदेश | धृतराष्ट्र का रणभूमि जाने हेतु नगर से बाहर निकलना | कृपाचार्य का धृतराष्ट्र को कौरव-पांडवों की सेना के विनाश की सूचना देना | पांडवों का धृतराष्ट्र से मिलना | धृतराष्ट्र द्वारा भीम की लोहमयी प्रतिमा भंग करना | धृतराष्ट्र के शोक करने पर कृष्ण द्वारा समझाना | कृष्ण के फटकारने पर धृतराष्ट्र का पांडवों को हृदय से लगाना | पांडवों को शाप देने के लिए उद्यत हुई गांधारी को व्यास द्वारा समझाना | भीम का गांधारी से क्षमा माँगना | युधिष्ठिर द्वारा अपना अपराध मानना एवं अर्जुन का भयवश कृष्ण के पीछे छिपना | द्रौपदी का विलाप तथा कुन्ती एवं गांधारी का उसे आश्वासन देना

स्त्रीविलाप पर्व

| गांधारी का कृष्ण के सम्मुख विलाप | दुर्योधन व उसके पास रोती हुई पुत्रवधु को देखकर गांधारी का विलाप | गांधारी का अपने अन्य पुत्रों तथा दु:शासन को देखकर विलाप करना | गांधारी का विकर्ण, दुर्मुख, चित्रसेन तथा दु:सह को देखकर विलाप | गांधारी द्वारा उत्तरा और विराटकुल की स्त्रियों के विलाप का वर्णन | गांधारी द्वारा कर्ण की स्त्री के विलाप का वर्णन | गांधारी का जयद्रथ एवं दु:शला को देखकर कृष्ण के सम्मुख विलाप | भीष्म और द्रोण को देखकर गांधारी का विलाप | भूरिश्रवा के पास उसकी पत्नियों का विलाप | शकुनि को देखकर गांधारी का शोकोद्गार | गांधारी का अन्यान्य वीरों को मरा देखकर शोकातुर होना | गांधारी द्वारा कृष्ण को यदुवंशविनाश विषयक शाप देना

श्राद्ध पर्व

| युधिष्ठिर द्वारा महाभारत युद्ध में मारे गये लोगों की संख्या और गति का वर्णन | युधिष्ठिर की अज्ञा से सबका दाह संस्कार | स्त्री-पुरुषों का अपने मरे हुए सम्बंधियों को जलांजलि देना | कुन्ती द्वारा कर्ण के जन्म का रहस्य प्रकट करना | युधिष्ठिर का कर्ण के लिये शोक प्रकट करते हुए प्रेतकृत्य सम्पन्न करना

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