द्रौपदी का विलाप तथा कुन्ती एवं गांधारी का उसे आश्वासन देना

महाभारत स्त्री पर्व में जलप्रदानिक पर्व के अंतर्गत 15वें अध्याय में द्रौपदी का विलाप तथा कुन्ती एवं गांधारी का उसे आश्वासन देने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

द्रौपदी का विलाप

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! कुन्‍तीदेवी दीर्घकाल के बाद अपने पुत्रों को देखकर उनके कष्‍टों का स्‍मरण करके करुणा में डूब गयीं और अंचल से मुँह ढककर आँसू बहाने लगीं। पुत्रों सहित आँसू बहाकर उन्‍होंने उनके शरीरों पर बारबार दृष्टिपात कि‍या। वे सभी अस्त्र-शस्त्रों की चोट से घायल हो रहे थे। बारी-बारी से पुत्रों के शरीर पर बारंबार हाथ फेरती हुई कुन्‍ती दु:ख से आतुर हो उस द्रौपदी के लिय शोक करने लगी, जिसके सभी पुत्र मारे गये थे। इतने में ही उन्‍होंने देखा कि द्रौपदी पास ही पृथ्‍वी पर गिरकर रो रही है। द्रौपदी बोली- आर्ये! अभिमन्‍यु सहित वे आपके सभी पौत्र कहाँ चले गये? वे दीर्घकाल के बाद आयी हुई आज आप तपस्विनी देवी को देखकर आपके निकट क्‍यों नहीं आ रहे हैं? अपने पुत्रों से हीन होकर अब इस राज्‍य से हमें क्‍या कार्य है?[1]

कुन्ती एवं गांधारी का द्रौपदी को आश्वासन देना

नरेश्वर! विशाल नेत्रों वाली कुन्ती ने शोक से कातर हो रोती हुई द्रुपदकुमारी को उठाकर धीरज बंधाया और उसके साथ ही वे स्वयं भी अत्यन्त आर्त होकर शोकाकुल गान्धारी के पास गयीं। उस समय उनके पुत्र पाण्डव भी उनके पीछे-पीछे गये।

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! गान्धारी ने बहू द्रौपदी और यशस्विनी कुन्ती से कहा- बेटी! इस प्रकार शोक से व्याकुल न होओ। देखो, मैं भी तो दुख में डूबी हुई हूँ। मैं समझती हूँ, समय के उलट-फेर से प्रेरित होकर यह सम्पूर्ण जगत का विनाश हुआ है, जो स्वभाव से ही रोमान्चकारी है। यह काण्ड अवश्‍यम्भावी था, इसीलिये प्राप्त हुआ है। जब संधि कराने के विषय में श्रीकृष्ण की अनुनय-विनय सफल नहीं हुई, उस समय परम बुद्धिमान विदुर जी ने जो महत्त्वपूर्ण बात कही थी, उसी के अनुसार यह सब कुछ सामने आया है। जब यह विनाश किसी तरह टल नहीं सकता था, विशेषतः जब सब कुछ होकर समाप्त हो गया, तो अब तुम्हें शोक नहीं करना चाहिये। वे सभी वीर संग्राम में मारे गये हैं, अतः शोक करने के योग्य नहीं है। आज जैसी मैं हूं, वैसी ही तुम भी हो। हम दोनों को कौन धीरज बंधायेगा? मेरे ही अपराध से इस श्रेष्ठ कुल का संहार हुआ है।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 15 श्लोक 19-37
  2. महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 15 श्लोक 38-44

सम्बंधित लेख

महाभारत स्त्री पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जलप्रदानिक पर्व

धृतराष्ट्र का दुर्योधन व कौरव सेना के संहार पर विलाप | संजय का धृतराष्ट्र को सान्त्वना देना | विदुर का धृतराष्ट्र को शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर का शरीर की अनित्यता बताते हुए शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर द्वारा दुखमय संसार के गहन स्वरूप और उससे छूटने का उपाय | विदुर द्वारा गहन वन के दृष्टांत से संसार के भयंकर स्वरूप का वर्णन | विदुर द्वारा संसाररूपी वन के रूपक का स्पष्टीकरण | विदुर द्वारा संसार चक्र का वर्णन | विदुर का संयम और ज्ञान आदि को मुक्ति का उपाय बताना | व्यास का धृतराष्ट्र को समझाना | धृतराष्ट्र का शोकातुर होना | विदुर का शोक निवारण हेतु उपदेश | धृतराष्ट्र का रणभूमि जाने हेतु नगर से बाहर निकलना | कृपाचार्य का धृतराष्ट्र को कौरव-पांडवों की सेना के विनाश की सूचना देना | पांडवों का धृतराष्ट्र से मिलना | धृतराष्ट्र द्वारा भीम की लोहमयी प्रतिमा भंग करना | धृतराष्ट्र के शोक करने पर कृष्ण द्वारा समझाना | कृष्ण के फटकारने पर धृतराष्ट्र का पांडवों को हृदय से लगाना | पांडवों को शाप देने के लिए उद्यत हुई गांधारी को व्यास द्वारा समझाना | भीम का गांधारी से क्षमा माँगना | युधिष्ठिर द्वारा अपना अपराध मानना एवं अर्जुन का भयवश कृष्ण के पीछे छिपना | द्रौपदी का विलाप तथा कुन्ती एवं गांधारी का उसे आश्वासन देना

स्त्रीविलाप पर्व

| गांधारी का कृष्ण के सम्मुख विलाप | दुर्योधन व उसके पास रोती हुई पुत्रवधु को देखकर गांधारी का विलाप | गांधारी का अपने अन्य पुत्रों तथा दु:शासन को देखकर विलाप करना | गांधारी का विकर्ण, दुर्मुख, चित्रसेन तथा दु:सह को देखकर विलाप | गांधारी द्वारा उत्तरा और विराटकुल की स्त्रियों के विलाप का वर्णन | गांधारी द्वारा कर्ण की स्त्री के विलाप का वर्णन | गांधारी का जयद्रथ एवं दु:शला को देखकर कृष्ण के सम्मुख विलाप | भीष्म और द्रोण को देखकर गांधारी का विलाप | भूरिश्रवा के पास उसकी पत्नियों का विलाप | शकुनि को देखकर गांधारी का शोकोद्गार | गांधारी का अन्यान्य वीरों को मरा देखकर शोकातुर होना | गांधारी द्वारा कृष्ण को यदुवंशविनाश विषयक शाप देना

श्राद्ध पर्व

| युधिष्ठिर द्वारा महाभारत युद्ध में मारे गये लोगों की संख्या और गति का वर्णन | युधिष्ठिर की अज्ञा से सबका दाह संस्कार | स्त्री-पुरुषों का अपने मरे हुए सम्बंधियों को जलांजलि देना | कुन्ती द्वारा कर्ण के जन्म का रहस्य प्रकट करना | युधिष्ठिर का कर्ण के लिये शोक प्रकट करते हुए प्रेतकृत्य सम्पन्न करना

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः