विदुर द्वारा संसाररूपी वन के रूपक का स्पष्टीकरण

महाभारत स्त्री पर्व में जलप्रदानिक पर्व के अंतर्गत छठवें अध्याय में विदुर द्वारा संसाररूपी वन के रूपक का स्पष्टीकरण करने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

संसाररूपी वन के रूपक का स्पष्टीकरण

धृतराष्ट्र बोले- वक्ताओं में श्रेष्ठ विदुर! यह तो बड़े आश्चर्य की बात है! उस ब्राह्मण को तो महान दु:ख प्राप्‍त हुआ था। वह बड़े कष्ट से वहाँ रह रहा था तो भी वहाँ कैसे उसका मन लगता था और कैसे संतोष होता था? कहाँ है वह देश, जहाँ बेचारा ब्राह्मण ऐसे धर्म संकट में रहता है? उस महान भय से उसका छुटकारा किस प्रकार हो सकता है? यह सब बताओ; फिर हम सब लोग उसे वहाँ से निकालने की पूरी चेष्टा करेंगे। उसके उद्धार के लिये मुझे बड़ी दया आ रही है। विदुर जी ने कहा- राजन! मोक्षतत्त्व के विद्वानों द्वारा बताया गया यह एक दृष्टान्त है, जिसे समक्षकर वैराग्‍य धारण करने से मनुष्य परलोक में पुण्य का फल पाता है। जिसे दुर्गम स्‍थानवन कहा गया है, यह संसार ही गहन स्‍वरुप है। जो सर्प कहे गये हैं, वे नाना प्रकार के रोग हैं। उस वन की सीमा पर जो विशालकाय नारी खड़ी थी, उसे विद्वान पुरुष रुप और कान्ति का विनाश करने वाली वृद्धावस्‍था बताते हैं।

नरेश्वर! उस वन में जो कुआँ कहा गया है, वह देहधारियों का शरीर है। उसमें नीचे जो विशाल नाग रहता है, वह काल ही है। वही सम्पूर्ण प्राणियों का अन्त करने वाला और देहधारियों का सर्वस्‍व हर लेने वाला है। कुएँ के मध्‍य भाग में जो लता उत्पन्न हुई बतायी गयी है, जिसको पकड़कर वह मनुष्य लटक रहा है, वह देहधारियों के जीवन की आशा ही है। राजन! जो कुएँ के मुखबन्ध के समीप छ: मुखों वाला हाथी उस वृक्ष की ओर बढ़ रहा है, उसे संवत्सर माना गया है। छ: ऋतुएँ ही उसके छ: मुख हैं और बारह महीने ही बारह पैर बताये गये हैं। जो चूहे सदा उद्यत रहकर उस वृक्ष को काटते हैं, उन चूहों को विचार शील विद्वान प्राणियों के दिन और रात बताते हैं। और जो-जो वहाँ मधुमक्खियाँ कही गयी हैं, वे सब कामनाएँ हैं। जो बहुत-सी धाराएँ मधु के झरने झरती रहती हैं, उन्हें कामरस जानना चाहिये, जहाँ सभी मानव डूब जाते हैं। विद्वान पुरुष इस प्रकार संसार चक्र की गति को जानते हैं; इसीलिये वे वैराग्‍य रुपी शस्त्र से इसके सारे बन्धनों को काट देते हैं।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 6 श्लोक 1-14

सम्बंधित लेख

महाभारत स्त्री पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जलप्रदानिक पर्व

धृतराष्ट्र का दुर्योधन व कौरव सेना के संहार पर विलाप | संजय का धृतराष्ट्र को सान्त्वना देना | विदुर का धृतराष्ट्र को शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर का शरीर की अनित्यता बताते हुए शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर द्वारा दुखमय संसार के गहन स्वरूप और उससे छूटने का उपाय | विदुर द्वारा गहन वन के दृष्टांत से संसार के भयंकर स्वरूप का वर्णन | विदुर द्वारा संसाररूपी वन के रूपक का स्पष्टीकरण | विदुर द्वारा संसार चक्र का वर्णन | विदुर का संयम और ज्ञान आदि को मुक्ति का उपाय बताना | व्यास का धृतराष्ट्र को समझाना | धृतराष्ट्र का शोकातुर होना | विदुर का शोक निवारण हेतु उपदेश | धृतराष्ट्र का रणभूमि जाने हेतु नगर से बाहर निकलना | कृपाचार्य का धृतराष्ट्र को कौरव-पांडवों की सेना के विनाश की सूचना देना | पांडवों का धृतराष्ट्र से मिलना | धृतराष्ट्र द्वारा भीम की लोहमयी प्रतिमा भंग करना | धृतराष्ट्र के शोक करने पर कृष्ण द्वारा समझाना | कृष्ण के फटकारने पर धृतराष्ट्र का पांडवों को हृदय से लगाना | पांडवों को शाप देने के लिए उद्यत हुई गांधारी को व्यास द्वारा समझाना | भीम का गांधारी से क्षमा माँगना | युधिष्ठिर द्वारा अपना अपराध मानना एवं अर्जुन का भयवश कृष्ण के पीछे छिपना | द्रौपदी का विलाप तथा कुन्ती एवं गांधारी का उसे आश्वासन देना

स्त्रीविलाप पर्व

| गांधारी का कृष्ण के सम्मुख विलाप | दुर्योधन व उसके पास रोती हुई पुत्रवधु को देखकर गांधारी का विलाप | गांधारी का अपने अन्य पुत्रों तथा दु:शासन को देखकर विलाप करना | गांधारी का विकर्ण, दुर्मुख, चित्रसेन तथा दु:सह को देखकर विलाप | गांधारी द्वारा उत्तरा और विराटकुल की स्त्रियों के विलाप का वर्णन | गांधारी द्वारा कर्ण की स्त्री के विलाप का वर्णन | गांधारी का जयद्रथ एवं दु:शला को देखकर कृष्ण के सम्मुख विलाप | भीष्म और द्रोण को देखकर गांधारी का विलाप | भूरिश्रवा के पास उसकी पत्नियों का विलाप | शकुनि को देखकर गांधारी का शोकोद्गार | गांधारी का अन्यान्य वीरों को मरा देखकर शोकातुर होना | गांधारी द्वारा कृष्ण को यदुवंशविनाश विषयक शाप देना

श्राद्ध पर्व

| युधिष्ठिर द्वारा महाभारत युद्ध में मारे गये लोगों की संख्या और गति का वर्णन | युधिष्ठिर की अज्ञा से सबका दाह संस्कार | स्त्री-पुरुषों का अपने मरे हुए सम्बंधियों को जलांजलि देना | कुन्ती द्वारा कर्ण के जन्म का रहस्य प्रकट करना | युधिष्ठिर का कर्ण के लिये शोक प्रकट करते हुए प्रेतकृत्य सम्पन्न करना

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