कृष्ण के फटकारने पर धृतराष्ट्र का पांडवों को हृदय से लगाना

महाभारत स्त्री पर्व में जलप्रदानिक पर्व के अंतर्गत तेरहवें अध्याय में श्रीकृष्ण द्वारा धृतराष्ट्र को फटकार कर उनका क्रोध शान्त करने तथा धृतराष्ट्र का पाण्डवों को हृदय से लगाने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]-

शोक करने पर कृष्ण का धृतराष्ट्र को समझाना

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! तदनन्तर सेवक-गण शौच-सम्बन्धी कार्य सम्पन्न कराने के लिय राजा धृतराष्ट्र की सेवा में उपस्थित हुए। जब वे शौचकृत्य पूर्ण कर चुके, तब भगवान मधुसूदन ने फिर उनसे कहा- ‘राजन! आपने वेदों और नाना प्रकार के शास्त्रों का अध्ययन किया है। सभी पुराणों और केवल राजधर्मों का भी श्रवण किया है। ऐसे विद्वान, परम बुद्धिमान और बलाबल का निर्णय करने में समर्थ होकर भी अपने ही अपराध से होने वाले इस विनाश को देखकर आप ऐसा क्रोध क्‍यों कर रहे हैं? भरतनन्दन! मैंने तो उसी समय आपसे यह बात कह दी थी, भीष्म, द्रोणाचार्य, विदुर और संजय ने भी आपको समझाया था। राजन! परंतु आपने किसी की बात नहीं मानी। कुरुनन्दन! हम लोगों ने आपको बहुत रोका; परंतु आपने बल और शौर्य में पाण्डवों को बढ़ा-चढ़ा जानकर भी हमारा कहना नहीं माना। जिसकी बुद्धि स्थिर है, ऐसा जो राजा स्वयं दोषों को देखता और देश-काल के विभाग को समझता है, वह परम कल्‍याण का भागी होता है। जो हित की बात बताने पर भी हिताहित की बात को नहीं समझ पाता, वह अन्याय का आश्रय ले बड़ी भारी विपत्ति में पड़कर शोक करता है। भरतनन्दन! आप अपनी ओर तो देखिये। आपका बर्ताव सदा ही न्याय के विपरीत रहा है।

राजन! आप अपने मन को वश में न करके सदा दुर्योधन के अधीन रहे हैं। अपने ही अपराध से विपत्ती में पड़कर आप भीमसेन को क्‍यों मार डालना चाहते हैं? इसलिये क्रोध को रोकिये और अपने दुष्कर्मों को याद कीजिये। जिस नीच दुर्योधन ने मन में जलन रखने के कारण पांचाल राजकुमारी कृष्णा को भरी सभा में बुलाकर अपमानित किया, उसे वैर का बदला लेने की इच्‍छा से भीमसेन ने मार डाला। आप अपने और दुरात्मा पुत्र दुर्योधन के उस अत्याचार पर तो दृष्टि डालिये, जबकि बिना किसी अपराध के ही आपने पाण्डवों का परित्याग कर दिया था’। वैशम्पायन जी कहते हैं- 'नरेश्वर! जब इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण ने सब सच्‍ची-सच्‍ची बातें कह डालीं, तब पृथ्वीपति धृतराष्ट्र ने देवकीनन्दन श्रीकृष्ण से कहा- ‘महाबाहु! माधव! आप जैसा कह रहे हैं, ठीक ऐसी ही बात है; परतु पुत्र का स्नेह प्रबल होता है, जिसने मुझे धैर्य से विचलित कर दिया था। श्रीकृष्ण! सौभग्य की बात है कि आपसे सुरक्षित होकर बलवान सत्यपराक्रमी पुरुषसिंह भीमसेन मेरी दोनों भुजाओं- के बीच में नही आये। माधव! अब इस समय मैं शान्त हूँ। मेरा क्रोध उतर गया है और चिन्ता भी दूर हो गयी है; अत: मैं मध्यम पाण्डव वीर अर्जुन को देखना चाहता हूँ। समस्त राजाओं तथा अपने पुत्रों के मारे जाने पर अब मेरा प्रेम और हितचिन्तन पाण्डु के इन पुत्रों पर ही आश्रित है’। तदनन्तर रोते हुए धृतराष्ट्र ने सुन्दर शरीर वाले भीमसेन, अर्जुन तथा माद्री के दोनों पुत्र नरवीर नकुल-सहदेव को अपने अंगों से लगाया और उन्हें सान्तवना देकर कहा- ‘तुम्हारा कल्‍याण हो’।


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 13 श्लोक 1-17

सम्बंधित लेख

महाभारत स्त्री पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जलप्रदानिक पर्व

धृतराष्ट्र का दुर्योधन व कौरव सेना के संहार पर विलाप | संजय का धृतराष्ट्र को सान्त्वना देना | विदुर का धृतराष्ट्र को शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर का शरीर की अनित्यता बताते हुए शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर द्वारा दुखमय संसार के गहन स्वरूप और उससे छूटने का उपाय | विदुर द्वारा गहन वन के दृष्टांत से संसार के भयंकर स्वरूप का वर्णन | विदुर द्वारा संसाररूपी वन के रूपक का स्पष्टीकरण | विदुर द्वारा संसार चक्र का वर्णन | विदुर का संयम और ज्ञान आदि को मुक्ति का उपाय बताना | व्यास का धृतराष्ट्र को समझाना | धृतराष्ट्र का शोकातुर होना | विदुर का शोक निवारण हेतु उपदेश | धृतराष्ट्र का रणभूमि जाने हेतु नगर से बाहर निकलना | कृपाचार्य का धृतराष्ट्र को कौरव-पांडवों की सेना के विनाश की सूचना देना | पांडवों का धृतराष्ट्र से मिलना | धृतराष्ट्र द्वारा भीम की लोहमयी प्रतिमा भंग करना | धृतराष्ट्र के शोक करने पर कृष्ण द्वारा समझाना | कृष्ण के फटकारने पर धृतराष्ट्र का पांडवों को हृदय से लगाना | पांडवों को शाप देने के लिए उद्यत हुई गांधारी को व्यास द्वारा समझाना | भीम का गांधारी से क्षमा माँगना | युधिष्ठिर द्वारा अपना अपराध मानना एवं अर्जुन का भयवश कृष्ण के पीछे छिपना | द्रौपदी का विलाप तथा कुन्ती एवं गांधारी का उसे आश्वासन देना

स्त्रीविलाप पर्व

| गांधारी का कृष्ण के सम्मुख विलाप | दुर्योधन व उसके पास रोती हुई पुत्रवधु को देखकर गांधारी का विलाप | गांधारी का अपने अन्य पुत्रों तथा दु:शासन को देखकर विलाप करना | गांधारी का विकर्ण, दुर्मुख, चित्रसेन तथा दु:सह को देखकर विलाप | गांधारी द्वारा उत्तरा और विराटकुल की स्त्रियों के विलाप का वर्णन | गांधारी द्वारा कर्ण की स्त्री के विलाप का वर्णन | गांधारी का जयद्रथ एवं दु:शला को देखकर कृष्ण के सम्मुख विलाप | भीष्म और द्रोण को देखकर गांधारी का विलाप | भूरिश्रवा के पास उसकी पत्नियों का विलाप | शकुनि को देखकर गांधारी का शोकोद्गार | गांधारी का अन्यान्य वीरों को मरा देखकर शोकातुर होना | गांधारी द्वारा कृष्ण को यदुवंशविनाश विषयक शाप देना

श्राद्ध पर्व

| युधिष्ठिर द्वारा महाभारत युद्ध में मारे गये लोगों की संख्या और गति का वर्णन | युधिष्ठिर की अज्ञा से सबका दाह संस्कार | स्त्री-पुरुषों का अपने मरे हुए सम्बंधियों को जलांजलि देना | कुन्ती द्वारा कर्ण के जन्म का रहस्य प्रकट करना | युधिष्ठिर का कर्ण के लिये शोक प्रकट करते हुए प्रेतकृत्य सम्पन्न करना

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