धृतराष्ट्र का दुर्योधन व कौरव सेना के संहार पर विलाप

महाभारत स्त्री पर्व में जलप्रदानिक पर्व के अंतर्गत प्रथम अध्याय में संजय ने धृतराष्ट्र का दुर्योधन व कौरव सेना के संहार पर विलाप करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

धृतराष्ट्र का विलाप

अन्तर्यामी नारायणस्वरूप भगवान श्रीकृष्ण, (उनके नित्य सखा) नरस्वरूप नरश्रेष्ठ अर्जुन, (उनकी लीला प्रकट करने वाली) भगवती सरस्वती और (उनकी लीलाओं का संकलन करने वाले) महर्षि वेदव्यास को नमस्कार करके जय (महाभारत) का पाठ करना चाहिये।

जनमेजय ने पूछा- मुने! दुर्योधन और उनकी सारी सेना का संहार हो जाने पर महाराज धृतराष्ट्र ने जब इस समाचार को सुना तो क्‍या किया? इसी प्रकार कुरुवंशी राजा महामनस्वी धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने तथा कृपाचार्य आदि तीनों महारथियों ने भी इसके बाद क्‍या किया? अश्वत्थामा को श्रीकृष्ण से और पाण्‍डवों को अश्वत्थामा से जो परस्पर शाप प्राप्त हुए थे, वहाँ तक मैंने अश्वत्थामा की करतूत सुन ली। अब उसके बाद का वृत्तान्त बताइये कि संजय ने धृतराष्ट्र से क्‍या कहा?

वैशम्पायन जी बोले- राजन! अपने सौ पुत्रों के मारे जाने पर राजा धृतराष्ट्र की दशा वैसी ही दयनीय हो गयी, जैसे समस्त शाखाओं के कट जाने पर वृक्ष की हो जाती है। वे पुत्रों के शोक से संतप्त हो उठे। महाराज! उन्हीं पुत्रों का ध्‍यान करते-करते वे मौन हो गये, चिन्ता में डूब गये। उस अवस्था में उनके पास जाकर संजय ने इस प्रकार कहा- ‘महाराज! आप क्‍यों शोक कर रहे हैं? इस शोक में जो आपकी सहायता कर सके, आपका दु:ख बँटा ले, ऐसा भी तो कोई नहीं बच गया है। प्रजानाथ! इस युद्ध में अट्ठाइस अक्षौहिणी सेनाएँ मारी गयी हैं। इस समय यह पृथ्‍वी निर्जन होकर केवल सूनी सी दिखायी देती है। नाना देशों के नरेश विभिन्न दिशाओं से आकर आपके पुत्र के साथ ही सब-के-सब काल के गाल में चले गये हैं। राजन! अब आप क्रमश: अपने चाचा, ताऊ, पुत्र, पौत्र, भाई-बन्धु, सहृद तथा गुरुजनों के प्रेत कार्य सम्पन्न कराइये’।

वैशम्पायन जी कहते हैं- नरेश्वर! संजय की यह करुणा जनक बात सुनकर बेटों और पोतों के वध से व्याकुल हुए दुर्जय राजा धृतराष्ट्र आँधी के उखाड़े हुए वृक्ष की भाँति पृथ्‍वी पर गिर पड़े। धृतराष्ट्र बोले- संजय! मेरे पुत्र, मन्त्री और समस्त सुहृद मारे गये। अब तो अवश्‍य ही मैं इस पृथ्‍वी पर भटकता हुआ केवल दु:ख-ही-दु:ख भोगूँगा। जिसकी पाँखें काट ली गयी हों, उस जराजीर्ण पक्षी के समान बन्धु-बान्धवों से हीन हुए मुझ वृद्ध को अब इस जीवन से क्‍या प्रयोजन है। महामते! मेरा राज्‍य छिन गया, बन्धु-बान्धव मारे गये और आँखे तो पहले से ही नष्ट हो चुकी थीं। अब मैं क्षीण किरणों वाले सूर्य के समान इस जगत में प्रकाशित नहीं होऊँगा। मैंने सुहृदों की बात नहीं मानी, जमदग्निनन्दन परशुराम, देवर्षि नारद तथा श्रीकृष्ण द्वैपायन व्यास सबने हित की बात बतायी थी, पर मैंने किसी की नहीं सुनी। श्रीकृष्ण ने सारी सभा के बीच में मेरे भले के लिये कहा था- ‘राजन! वैर बढ़ाने से आप को क्‍या लाभ है? अपने पुत्रों को रोकिये’। उनकी उस बात को न मानकर आज मैं अत्यन्त संतप्त हो रहा हूँ। मेरी बुद्धि बिगड़ गयी थी।[1]

हाय! अब मैं भीष्म जी की धर्मयुक्त बात नहीं सुन सकूँगा। साँड़ के समान गर्जने वाले दुर्योधन के वीरोचित वचन भी अब मेरे कानों में नहीं पड़ सकेंगे। दु:शासन मारा गया, कर्ण का विनाश हो गया और द्रोणरुपी सूर्य पर भी ग्रहण लग गया, यह सब सुनकर मेरा हृदय विदीर्ण हो रहा है। संजय! इस जन्म में पहले कभी अपना किया हुआ कोई ऐसा पाप मुझे नहीं याद आ रहा है, जिसका मुझ मूढ़ को आज यहाँ यह फल भोगना पड़ रहा है। अवश्‍य ही मैंने पूर्वजन्मों में कोई ऐसा महान पाप किया है, जिससे विधाता ने मुझे इन दु:खमय कर्मों में नियुक्त कर दिया है। अब मेरा बुढ़ापा आ गया, सारे बन्धु-बान्धवों का विनाश हो गया और दैववश मेरे सुहृदों तथा मित्रों का भी अन्त हो गया। भला, इस भूमण्‍डल में अब मुझसे बढ़कर महान दुखी दूसरा कौन होगा? इसलिये कठोर व्रत का पालन करने वाले पाण्डव लोग मुझे आज ही ब्रह्मलोक के खुले हुए विशाल मार्ग पर आगे बढ़ते देखें।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 1 श्लोक 1-14
  2. महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 1 श्लोक 15-33

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महाभारत स्त्री पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जलप्रदानिक पर्व

धृतराष्ट्र का दुर्योधन व कौरव सेना के संहार पर विलाप | संजय का धृतराष्ट्र को सान्त्वना देना | विदुर का धृतराष्ट्र को शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर का शरीर की अनित्यता बताते हुए शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर द्वारा दुखमय संसार के गहन स्वरूप और उससे छूटने का उपाय | विदुर द्वारा गहन वन के दृष्टांत से संसार के भयंकर स्वरूप का वर्णन | विदुर द्वारा संसाररूपी वन के रूपक का स्पष्टीकरण | विदुर द्वारा संसार चक्र का वर्णन | विदुर का संयम और ज्ञान आदि को मुक्ति का उपाय बताना | व्यास का धृतराष्ट्र को समझाना | धृतराष्ट्र का शोकातुर होना | विदुर का शोक निवारण हेतु उपदेश | धृतराष्ट्र का रणभूमि जाने हेतु नगर से बाहर निकलना | कृपाचार्य का धृतराष्ट्र को कौरव-पांडवों की सेना के विनाश की सूचना देना | पांडवों का धृतराष्ट्र से मिलना | धृतराष्ट्र द्वारा भीम की लोहमयी प्रतिमा भंग करना | धृतराष्ट्र के शोक करने पर कृष्ण द्वारा समझाना | कृष्ण के फटकारने पर धृतराष्ट्र का पांडवों को हृदय से लगाना | पांडवों को शाप देने के लिए उद्यत हुई गांधारी को व्यास द्वारा समझाना | भीम का गांधारी से क्षमा माँगना | युधिष्ठिर द्वारा अपना अपराध मानना एवं अर्जुन का भयवश कृष्ण के पीछे छिपना | द्रौपदी का विलाप तथा कुन्ती एवं गांधारी का उसे आश्वासन देना

स्त्रीविलाप पर्व

| गांधारी का कृष्ण के सम्मुख विलाप | दुर्योधन व उसके पास रोती हुई पुत्रवधु को देखकर गांधारी का विलाप | गांधारी का अपने अन्य पुत्रों तथा दु:शासन को देखकर विलाप करना | गांधारी का विकर्ण, दुर्मुख, चित्रसेन तथा दु:सह को देखकर विलाप | गांधारी द्वारा उत्तरा और विराटकुल की स्त्रियों के विलाप का वर्णन | गांधारी द्वारा कर्ण की स्त्री के विलाप का वर्णन | गांधारी का जयद्रथ एवं दु:शला को देखकर कृष्ण के सम्मुख विलाप | भीष्म और द्रोण को देखकर गांधारी का विलाप | भूरिश्रवा के पास उसकी पत्नियों का विलाप | शकुनि को देखकर गांधारी का शोकोद्गार | गांधारी का अन्यान्य वीरों को मरा देखकर शोकातुर होना | गांधारी द्वारा कृष्ण को यदुवंशविनाश विषयक शाप देना

श्राद्ध पर्व

| युधिष्ठिर द्वारा महाभारत युद्ध में मारे गये लोगों की संख्या और गति का वर्णन | युधिष्ठिर की अज्ञा से सबका दाह संस्कार | स्त्री-पुरुषों का अपने मरे हुए सम्बंधियों को जलांजलि देना | कुन्ती द्वारा कर्ण के जन्म का रहस्य प्रकट करना | युधिष्ठिर का कर्ण के लिये शोक प्रकट करते हुए प्रेतकृत्य सम्पन्न करना

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