गांधारी द्वारा उत्तरा और विराटकुल की स्त्रियों के विलाप का वर्णन

महाभारत स्त्री पर्व में स्त्रीविलाप पर्व के अंतर्गत 20वें अध्याय में गांधारी ने उत्तरा और विराटकुल की स्त्रियों के विलाप का वर्णन श्रीकृष्ण से किया है, जो इस प्रकार है[1]-

गान्धारी द्वारा श्रीकृष्ण के प्रति उत्तरा के विलाप का वर्णन

गान्धारी बोलीं- दशार्हनन्दन केशव! जिसे बल और शौर्य में अपने पिता से तथा तुमसे भी डेढ़ गुना बताया जाता था जो प्रचण्ड सिंह के समान अभिमान में भरा रहता था जिसने अकेले ही मेरे पुत्र के दुर्भेघ व्यूह को तोड़ डाला था, वही अभिमन्यु दूसरों की मृत्यु बनकर स्वंय भी मृत्यु के अधीन हो गया। श्रीकृष्ण। मैं देख रही हूँ कि मारे जाने पर भी अमित तेजस्वी अर्जुन पुत्र अभिमन्यु की कांति अभी अभी बुझ नहीं पा रही है। यह राजा विराट की पुत्री और गाण्डीवधारी अर्जुन की पुत्रवधु सती साध्वी उत्तरा अपने बालक पति वीर अभिमन्यु को मरा देख आर्त होकर शोक प्रकट कर रही है। श्रीकृष्ण! यह विराट की पुत्री और अभिमन्यु की पत्नि उत्तरा अपने पति के निकट जाकर उसके शरीर पर हाथ फेर रही है। शुभद्रा कुमार का मुख प्रफुल्ल कमल के समान शोभा पाता है। उसकी ग्रीवा शंख के समान गोल है, कमनीय रूप सौन्दर्य से सुशोभित माननीय एवं मनस्विनी उत्तरा पति के मुखारविन्द को सूँघकर उसे गले से लगा रही है। पहले भी यह इसी प्रकार मधु के मद से अचेत हो सलज्ज भाव से उसका आलिंगन करती रही होगी। श्रीकृष्ण! अभिमन्यु का सुवर्ण भूषित कवच खून से रँग गया है। बालिका उत्तरा उस कवच को खोलकर पति के शरीर को देख रही है। उसे देखती हुई वह वाला तुमसे पुकार कर कहती है, कमलनयन! आपके भानजे के नेत्र भी आपके ही समान थे। यह रणभूमि में मार गिराये गये हैं। अनघ! जो बल, वीर्य, तेज और रूप में सवर्था आपके समान थे, वे ही सुभद्रा कुमार शत्रुओं द्वारा मारे जाकर पृथ्वी पर सो रहे हैं।

(श्रीकृष्ण! अब उत्तरा अपने पति को संबोधित करके कहती है) प्रियतम! आपका शरीर तो अत्यन्त सुकुमार है। आप रंकुमृग के चर्म से बने हुए सुकोमल बिछौने पर सोया करते थे। क्या आज इस तरह पृथ्वी पर पड़े रहने से आपके शरीर को कष्ट नहीं होता है? जो हाथी की सूँड के समान बड़ी है, निरंतर प्रत्यंचा खींचने के कारण रगड़ से जिनकी त्वचा कठोर हो गयी है तथा जो सोने के बाजूबन्द धारण करते हैं उन विशाल भुजाओं को फैलाकर आप सो रहे हैं। निश्चय ही बहुत परिश्रम करके मानो थक जाने कारण आप सुख की नींद ले रहे हो। मैं इस तरह आर्त होकर विलाप करती हूँ किंतु आप मुझसे बोलते तक नहीं हैं। मैंने कोई अपराध किया हो, ऐसा तो मुझे स्मरण नहीं है, फिर क्या कारण कि आप मुझसे नहीं बोलते हैं। पहले तो आप मुझे दूर से भी देख लेने पर बोले बिना नहीं रहते थे। आर्य! आप माता सुभद्रा को, इन देवताओं के समान ताऊ, पिता और चाचाओं तथा मुझ दुखातुरा पत्नि को छोड़कर कहाँ जायँगे? जनार्दन! देखो, अभिमन्यु के सिर को गोदी में रखकर उत्तरा उसके खून से सने हुए केषों को हाथ से उठा-उठा कर सुलझाती है और मानो वह जी रहा हो, इस प्रकार उससे पूछती है। प्राणनाथ! आप वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण के भानजे और गाण्डीवधारी अर्जुन के पुत्र थे। रणभूमि के मध्य भाग में खड़े हुए आपको इन महारथियों ने कैसे मार डाला?[1]

उन क्रूरकर्मा कृपाचार्य, कर्ण और जयद्रथ को धिक्कार है, द्रोणाचार्य और उनके पुत्र को भी धिक्कार है। जिन्होंने मुझे इसी उम्र में विधवा बना दिया। आप बालक थे और अकेले युद्ध कर रहे थे तो भी मुझे दुख देने के लिये जिन लोगों ने मिलकर आपको मारा था, उन समस्त श्रेष्ठ महारथियों के मन उस समय क्या दशा हुई थी? वीर! आप पाण्डवों और पाञ्चालों के देखते-देखते सनाथ होते हुए भी अनाथ की भाँति कैसे मारे गये। आपको युद्धस्थल में बहुत से महारथियों द्वारा मारा गया देख आपके पिता पुरुषसिंह वीर पाण्डव कैसे जी रहे हैं? कमलनयन! प्राणेश्वर! पाण्डवों को यह विशाल राज्य मिल गया है, उन्होंने शत्रुओं को जो पराजित कर दिया है, यह सब कुछ आपके बिना उन्हें प्रसन्न नहीं कर सकेगा। आर्यपुत्र! आपके शस्त्रों द्वारा जीते हुए पुण्यलोकों में मैं भी धर्म और इन्द्रिय संयम के बल से शीघ्र ही आऊँगी। आप वहाँ मेरी राह देखिये। जान पड़ता है कि मृत्यु काल आये बिना किसी का भी मरना अत्यन्त कठिन है, तभी तो मैं अभागिनी आप को युद्ध में मारा गया देखकर भी अब तक जी रही हूँ। नरश्रेष्ठ! आप पितृलोक में जाकर इस समय मेरी ही तरह दूसरी किस स्त्री को मन्द मुस्कान के साथ मीठी वाणी द्वारा बुलायेंगे? निश्‍चय ही स्वर्ग में जाकर आप अपने सुन्दर रूप और मन्द मुस्कानयुक्त मधुर वाणी के द्वारा वहाँ की अप्सराओं के मन को मथ डालेंगे। सुभद्रानन्दन! आप पुण्य आत्माओं के लोकों में जाकर अप्सराओं के साथ मिलकर विहार करते समय मेरे शुभ कर्मों का भी स्मरण कीजियेगा। वीर! इस लोक में तो मेरे साथ आपका कुल छः महीनों तक ही सहवास रहा है। सातवें महीने में ही आप वीरगति को प्राप्त हो गये। इस तरह की वातें कहकर दुख में डूबी हुई इस उत्तरा को जिसका सारा संकल्प मिट्टी में मिल गया है, मत्स्य राज विराट के कुल की स्त्रियाँ खींचकर दूर ले जा रही हैं।[2]

विराटकुल की स्त्रियों का शोक एवं विलाप

शोक से आतुर ही उत्तरा को खींचकर अत्यंत आर्त हुई वे स्त्रियाँ राजा विराट को मारा गया देख स्वंय भी चीखने और विलाप करने लगी हैं। द्रोणाचार्य के बाणों से छिन्न-भिन्न हो खून से लथपथ होकर रणभूमि में पड़े हुए राजा विराट को ये गीध, गीदड़ और कौऐ नोच रहे हैं। विराट को उन विहंगमों द्वारा नोचे जाते देख कजरारी आँखों वाली उनकी रानियां आतुत हो-होकर उन्हें हटाने की चेष्टा करती हैं, पर हटा नहीं पाती हैं। इन युवतियों के मुखारबिन्द धूप से तप गये हैं आयास और परिश्रम से उनके रंग फीके पड़ गये हैं। माधव! उत्तर, अभिमन्यु, काम्बोज निवासी सुदक्षिण और सुन्दर दिखाई देने वाले लक्ष्मण- ये सभी बालक थे! इन मारे गये बालकों को देखो। युद्ध के मुहाने पर सोए हुए परम सुन्दर कुमार लक्ष्मण पर भी दृष्टिपात करो।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 20 श्लोक 1-17
  2. 2.0 2.1 महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 20 श्लोक 18-35

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