भूरिश्रवा के पास उसकी पत्नियों का विलाप

महाभारत स्त्री पर्व में स्त्रीविलाप पर्व के अंतर्गत 24वें अध्याय में वैशम्पायन ने भूरिश्रवा के पास उसकी पत्नियों को विलाप करते गांधारी द्वारा कृष्ण के सम्मुख उनका शोक प्रकट करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-

गांधारी द्वारा भूरिश्रवा की पत्नियों के विलाप का वर्णन

गान्धारी बोलीं- माधव! देखो सात्यकि ने जिन्हे मार गिराया था, वे ही ये सोमदत्त के पुत्र भूरिश्रवा पास ही दिखाई दे रहे हैं। इन्हें बहुत से पक्षी चोंच मार-मार कर नोंच रहे हैं। जनार्दन! उधर पुत्र शोक से संतप्त मरे हुए सोमदत्त महान धनुर्धर सात्यकि की निन्दा करते हुए से दिखाई दे रहे हैं। उधर वे शोक में डूबी हुई भूरिश्रवा की सती साध्वी माता अपने पति को मानो आश्वासन देती हुई कहती है। महाराज! सौभाग्य से आपको यह भरतवंषियों का दारुण विनास, घोर प्रलय के समान कुरुकुल का महान संहार देखने का अवसर नहीं मिला है। जिसकी ध्वजा में यूप का चिह्न था जो सहस्रों स्वर्ण मुद्राओं की भूरि-भूरि दक्षणा दिया करता था और जिसके अनेक यज्ञों का अनुष्ठान पूरा कर लिया था, उस वीर पुत्र भूरिश्रवा की मृत्यु का कष्ट सौभाग्य से आप नहीं देख रहे हैं। महाराज! समुद्र तट पर चीत्कार करने वाली सारसियों के समान इस युद्धस्थल में आप इन अपने पुत्रवधुओं का अत्यन्त भयानक विलाप नहीं सुन रहे हैं, यह भाग्य की ही बात है। आपकी पुत्रवधुऐं एक वस्त्र अथवा आधे वस्त्र से ही शरीर को ढक कर अपनी काली-काली लटें छिटकाये इस युद्धभूमि में चारों ओर दौड़ रही हैं। इन सबके पुत्र और पति भी मारे जा चुके हैं। अहो! आपका बड़ा भाग्य है कि अर्जुन ने जिसकी एक बांह काट ली थी और सात्यकि ने जिसे मार गिराया था, युद्ध मेें मारे गये उस भूरिश्रवा और शल्य को आप हिंसक जन्तुओं का आहार बनते नहीं देखते हैं तथा इन सब अनेक प्रकार के रूप रंग वाली पुत्रवधुओं को भी आज यहाँ रणभूमि में भटकती हुई नहीं देख रहे हैं। सौभाग्य से अपने महामनस्वी पुत्र यूपध्वज भूरिश्रवा के रथ पर खण्डित होकर गिरे हुए उसके के स्वर्णमय छत्र को आप नहीं देख पा रहे हैं। श्रीकृष्ण! भूरिश्रवा के कजरारे नेत्रों वाली वे पत्नियां सात्यकि द्वारा मारे गये अपने पति को सब ओर से घेरकर बार-बार शोक से पीड़ित हो रही हैं। केशव! पति शोक से पीड़ित हुई ये अवलाऐं करुणा जनक विलाप करके पति के सामने अत्यन्त दुख से पछाड़ खा-खा कर गिर रही हैं।

वे कहती है- 'अर्जुन ने यह अत्यन्त घृणित कर्म कैसे किया? कि दूसरे के साथ युद्ध में लगे रहकर उनकी ओर से असावधान हुए आप जैसे यज्ञ परायण शूरवीर की बाहें काट डाली। उनसे भी बढ़कर घोर पाप कर्म सात्यकि ने किया है; क्योंकि उन्होेंने आमरण अनसन के लिये बैठे हुए एक शुद्धात्मा साधु पुरुष के ऊपर खड्ग का प्रहार किया है। धर्मात्मा महापुरुष तुम अकेले दो महारथियों द्वारा अधर्म पूर्वक मारे जाकर रणभूमि में सो रहे हो। भला, सात्यकि साधु पुरुषों की सभाओं और बैठकों में अपने लिये कलंक का टीक लगाने वाले इस पाप कर्मों का वर्णन स्वंय अपने ही मुख से किस प्रकार करेंगे'? माधव! इस प्रकार यूपध्वज ये स्त्रियां सात्यकि को कोस रही हैं। श्रीकृष्ण! देखो, यूपध्वज की यह पतली कमर वाली भार्या पति की कटी हुई बाहों को गोद में लेकर बड़े दीन भाव से विलाप कर रही है। वह कहती है- हाय! यह वही हाथ है, जिसने युद्ध में अनेक शूरवीरों का वध, मित्रों का अभयदान, शहस्त्रों गौदान तथा क्षत्रियों का संहार किया है।[1] यह वही हाथ है, जो हमारी करधनी को खींच लेता, उभरे हुए स्तनों का मर्दन करता, नाभि, उरू और जघन प्रदेश का छूता और निभिका बन्दन सरका दिया करता था। जब मेरे पति समरांगण में दूसरे के साथ युद्ध में संलग्न हो अर्जुन की ओर से असावधान थे, उस समय भगवान श्रीकृष्ण के निकट अनायास ही महान कर्म करने वाले अर्जुन ने इस हाथ को काट गिराया था। जनार्दन! तुम सतपुरुषों की सभाओं में, बातचीत के प्रसंग में अर्जुन के महान कर्म का किस तरह वर्णन करोगे? अथवा स्वयं किरीटाधारी अर्जुन ही कैसे इस जघन्य कार्य की चर्चा करेंगे? इस तरह अर्जुन की निंदा करके यह सुन्दरी चुप हो गयी है। इसकी बड़ी सौतें इसके लिये उसी प्रकार शोक प्रकट कर रही हैं, जैसे सास अपनी बहू के लिये किया करती है।[2]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 16 श्लोक 1-21
  2. महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 24 श्लोक 19-30

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