धृतराष्ट्र का शोकातुर होना

महाभारत स्त्री पर्व में जलप्रदानिक पर्व के अंतर्गत नौवें अध्याय में धृतराष्ट्र के शोकातुर होने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

जनमेजय ने वैशम्पायन जी से पूछा- विप्रर्षे! भगवान व्‍यास के चले जाने पर राजा धृतराष्ट्र ने क्‍या किया? यह मुझे विस्‍तारपूर्वक बताने की कृपा करें। इसी प्रकार कुरुवंशी राजा महामनस्‍वी धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने तथा कृप आदि तीनों महारथियों ने क्‍या किया? अश्वत्थामा का कर्म तो मैंने सुन लिया, परस्‍पर जो शाप दिये गये, उनका हाल भी मालूम हो गया। अब आगे का वृत्तान्‍त बताइये, जिसे संजय ने धृतराष्ट्र को सुनाया हो।

वैशम्‍पायन जी ने कहा-राजन! दुर्योधन तथा उसकी सारी सेनाओं के मारे जाने पर संजय की दिव्‍य दृष्टि चली गयी और वह धृतराष्ट्र की सभा में उपस्थित हुआ। संजय बोला-राजन! नाना जनपदों के स्‍वामी विभिन्न देशों से आकर सब-के-सब आप के पुत्रों के साथ पितृलोक के पथिक बन गये ।भारत! आपके पुत्र से सब लोगों ने सदा शान्ति के लिये याचना की, तो भी उसने वैर का अन्‍त करने की इच्‍छा से सारे भूमण्‍डल का विनाश करा दिया। महाराज! अब आप क्रमश: अपने ताऊ, चाचा, पुत्र और पौत्रों का मृतक सम्‍बन्‍धी कर्म करवाइये। वैशम्‍पायन जी कहते हैं- राजन! संजय का यह घोर वचन सुनकर राजा धृतराष्ट्र प्राणशून्‍य की भाँति निश्‍चेष्‍ट हो पृथ्‍वी पर गिर पड़े।

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 9 श्लोक 1-18

सम्बंधित लेख

महाभारत स्त्री पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जलप्रदानिक पर्व

धृतराष्ट्र का दुर्योधन व कौरव सेना के संहार पर विलाप | संजय का धृतराष्ट्र को सान्त्वना देना | विदुर का धृतराष्ट्र को शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर का शरीर की अनित्यता बताते हुए शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर द्वारा दुखमय संसार के गहन स्वरूप और उससे छूटने का उपाय | विदुर द्वारा गहन वन के दृष्टांत से संसार के भयंकर स्वरूप का वर्णन | विदुर द्वारा संसाररूपी वन के रूपक का स्पष्टीकरण | विदुर द्वारा संसार चक्र का वर्णन | विदुर का संयम और ज्ञान आदि को मुक्ति का उपाय बताना | व्यास का धृतराष्ट्र को समझाना | धृतराष्ट्र का शोकातुर होना | विदुर का शोक निवारण हेतु उपदेश | धृतराष्ट्र का रणभूमि जाने हेतु नगर से बाहर निकलना | कृपाचार्य का धृतराष्ट्र को कौरव-पांडवों की सेना के विनाश की सूचना देना | पांडवों का धृतराष्ट्र से मिलना | धृतराष्ट्र द्वारा भीम की लोहमयी प्रतिमा भंग करना | धृतराष्ट्र के शोक करने पर कृष्ण द्वारा समझाना | कृष्ण के फटकारने पर धृतराष्ट्र का पांडवों को हृदय से लगाना | पांडवों को शाप देने के लिए उद्यत हुई गांधारी को व्यास द्वारा समझाना | भीम का गांधारी से क्षमा माँगना | युधिष्ठिर द्वारा अपना अपराध मानना एवं अर्जुन का भयवश कृष्ण के पीछे छिपना | द्रौपदी का विलाप तथा कुन्ती एवं गांधारी का उसे आश्वासन देना

स्त्रीविलाप पर्व

| गांधारी का कृष्ण के सम्मुख विलाप | दुर्योधन व उसके पास रोती हुई पुत्रवधु को देखकर गांधारी का विलाप | गांधारी का अपने अन्य पुत्रों तथा दु:शासन को देखकर विलाप करना | गांधारी का विकर्ण, दुर्मुख, चित्रसेन तथा दु:सह को देखकर विलाप | गांधारी द्वारा उत्तरा और विराटकुल की स्त्रियों के विलाप का वर्णन | गांधारी द्वारा कर्ण की स्त्री के विलाप का वर्णन | गांधारी का जयद्रथ एवं दु:शला को देखकर कृष्ण के सम्मुख विलाप | भीष्म और द्रोण को देखकर गांधारी का विलाप | भूरिश्रवा के पास उसकी पत्नियों का विलाप | शकुनि को देखकर गांधारी का शोकोद्गार | गांधारी का अन्यान्य वीरों को मरा देखकर शोकातुर होना | गांधारी द्वारा कृष्ण को यदुवंशविनाश विषयक शाप देना

श्राद्ध पर्व

| युधिष्ठिर द्वारा महाभारत युद्ध में मारे गये लोगों की संख्या और गति का वर्णन | युधिष्ठिर की अज्ञा से सबका दाह संस्कार | स्त्री-पुरुषों का अपने मरे हुए सम्बंधियों को जलांजलि देना | कुन्ती द्वारा कर्ण के जन्म का रहस्य प्रकट करना | युधिष्ठिर का कर्ण के लिये शोक प्रकट करते हुए प्रेतकृत्य सम्पन्न करना

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