भीम का गांधारी से क्षमा माँगना

महाभारत स्त्री पर्व में जलप्रदानिक पर्व के अंतर्गत 15वें अध्याय में भीम का गांधारी से क्षमा माँगने का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]

भीम और गांधारी की बातचीत

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! गान्धारी की यह बात सुनकर भीमसेन नें डरे हुए की भाँति विनयपूर्वक उनकी बात का उत्तर देते हुए कहा। ‘माता जी! यह अधर्म हो या धर्म; मैंने दुर्योधन से डरकर अपने प्राण बचाने के लिये ही वहाँ ऐसा किया था; अत: आप मेरे उस अपराध को क्षमा कर दें। ‘आपके उस महाबली पुत्र को कोई भी धर्मानुकूल युद्ध करके मारने का साहस नहीं कर सकता था; अत: मैंने विषमतापूर्ण बर्ताव किया। ‘पहले उसने भी अधर्म से ही राजा युधिष्ठिर को जीता था और हम लोगों के साथ सदा धोखा किया था, इसलिये मैंने भी उसके साथ विषम बर्ताव किया ।‘कौरव सेना का एकमात्र बचा हुआ यह पराक्रमी वीर गदायुद्ध के द्वारा मुझे मारकर पुन: सारा राज्‍य हर न ले, इसी आशंका से मैंने वह अयोग्‍य बर्ताव किया था। ‘राजकुमारी द्रौपदी से, जो एक वस्त्र धारण किये रजस्‍वला अवस्‍था में थी, आपके पुत्र ने जो कुछ कहा था, वह सब आप जानती हैं। ‘दुर्योधन का संहार किये बिना हम लोग निष्‍कण्‍टक पृथ्‍वी का राज्‍य नहीं भोग सकते थे, इसलिये मैंने यह अयोग्‍य कार्य किया। ‘आपके पुत्र ने तो हम सब लोगों का इससे भी बढ़कर अप्रिय कि‍या था कि उसने भरी सभा में द्रौपदी को अपनी बाँयीं जाँघ दिखायी। ‘आपके उस दुराचारी पुत्र को तो हमें उसी समय मार डालना चाहिये था; परंतु धर्मराज की आज्ञा से हमलोग समय के बन्‍धन में बँधकर चुप रह गये। ‘रानी! आपके पुत्र ने उस महान वैर की आग को और भी प्रज्‍वलित कर दिया और हमें वन में भेजकर सदा क्‍लेश पहुँचाया; इसीलिये हमने उसके साथ ऐसा व्‍यवहार किया है। ‘रणभूमि में दुर्योधन का वध करके हम लोग इस वैर से पार हो गये। राजा युधिष्ठिर को राज्‍य मिल गया और हम लोगों का क्रोध शान्‍त हो गया’।

गान्धारी बोलीं- तात! तुम मेरे पुत्र की इतनी प्रशंसा कर रहे हो; इसलिये यह उसका वध नहीं हुआ (वह अपने यशोमय शरीर से अमर है) और मेरे सामने तुम जो कुछ कह रहे हो, वह सारा अपराध दुर्योधन ने अवश्‍य किया है। भारत! परंतु वृषसेन ने जब नकुल के घोड़ो को मारकर उसे रथहीन कर दिया था, उस समय तुमने युद्ध में दु:शासन को मारकर जो उसका खून पी लिया, वह सत्‍पुरुषों द्वारा निन्दित और नीच पुरुषों द्वारा सेवित घोर क्रूरतापूर्ण कर्म है। वृकोदर! तुमने वही क्रूर कार्य किया है, इसलिये तुम्‍हारे द्वारा अत्‍यन्‍त अयोग्‍य कर्म बन गया है।

भीमसेन बोले- माता जी! दूसरे का भी खून नहीं पीना चाहिये; फिर अपना ही खून कोई कैसे पी सकता है? जैसे अपना शरीर है, वैसे ही भाई का शरीर है। अपने में और भाई में कोई अन्‍तर नहीं है। माँ! आप शोक न करें। वह खून मेरे दाँतो और ओठों को लाँघकर आगे नहीं जा सका था। इस बात को सूर्य-पुत्र यमराज जानते हैं कि केवल मेरे दोनों हाथ ही रक्त में सने हुए थे। युद्ध में वृषसेन के द्वारा नकुल के घोड़ो को मारा गया देख जो दु:शासन के सभी भाई हर्ष से उल्‍लसित हो उठे थे, उनके मन में वैसा करके मैंने केवल त्रास उत्‍पन्न किया था। द्यतक्रीडा के समय जब द्रौपदी का केश खींचा गया, उस समय क्रोध में भरकर मैंने जो प्रतिज्ञा की थी, उसकी याद हमारे हृदय में बराबर बनी रहती थी।[1] रानी जी! यदि मैं उस प्रतिज्ञा को पूर्ण न करता तो सदा के लिये क्ष‍त्रिय-धर्म से गिर जाता, इसलिये मैंने यह काम किया था। माता गान्धारी! आपको मुझमें दोष की आशंका नहीं करनी चाहिये। पहले जब हम लोगों ने काई अपराध नहीं किया था, उस समय हम पर अत्‍याचार करने वाले अपने पुत्रों-को तो आपने रोका नही; फिर इस समय आप क्‍यों मुझ पर दोषारोपण करती है? गान्धारी बोलीं- बेटा! तुम अपराजित वीर हो। तुमने इन बूढ़े महाराज के सौ पुत्रों को मारते समय कि‍सी एक को भी, जिसने बहुत थोड़ा अपराध किया था, क्‍यों नहीं जीवित छोड़ दिया? तात! हम दोनों बूढ़े हुए। हमारा राज्‍य भी तुमने छीन लिया। ऐसी दशा में हमारी एक ही संतान को हम दो अन्‍धों के लिये एक ही लाठी के सहारे को तुमने क्‍यों नहीं जीवित छोड़ दिया? तात! तुम मेरे सारे पुत्रों के लिये यमराज बन गये। यदि तुम धर्म का आचरण करते और मेरा एक पुत्र भी शेष रह जाता तो मुझे इतना दु:ख नहीं होता।[2]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 15 श्लोक 1-18
  2. महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 15 श्लोक 19-37

सम्बंधित लेख

महाभारत स्त्री पर्व में उल्लेखित कथाएँ


जलप्रदानिक पर्व

धृतराष्ट्र का दुर्योधन व कौरव सेना के संहार पर विलाप | संजय का धृतराष्ट्र को सान्त्वना देना | विदुर का धृतराष्ट्र को शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर का शरीर की अनित्यता बताते हुए शोक त्यागने के लिए कहना | विदुर द्वारा दुखमय संसार के गहन स्वरूप और उससे छूटने का उपाय | विदुर द्वारा गहन वन के दृष्टांत से संसार के भयंकर स्वरूप का वर्णन | विदुर द्वारा संसाररूपी वन के रूपक का स्पष्टीकरण | विदुर द्वारा संसार चक्र का वर्णन | विदुर का संयम और ज्ञान आदि को मुक्ति का उपाय बताना | व्यास का धृतराष्ट्र को समझाना | धृतराष्ट्र का शोकातुर होना | विदुर का शोक निवारण हेतु उपदेश | धृतराष्ट्र का रणभूमि जाने हेतु नगर से बाहर निकलना | कृपाचार्य का धृतराष्ट्र को कौरव-पांडवों की सेना के विनाश की सूचना देना | पांडवों का धृतराष्ट्र से मिलना | धृतराष्ट्र द्वारा भीम की लोहमयी प्रतिमा भंग करना | धृतराष्ट्र के शोक करने पर कृष्ण द्वारा समझाना | कृष्ण के फटकारने पर धृतराष्ट्र का पांडवों को हृदय से लगाना | पांडवों को शाप देने के लिए उद्यत हुई गांधारी को व्यास द्वारा समझाना | भीम का गांधारी से क्षमा माँगना | युधिष्ठिर द्वारा अपना अपराध मानना एवं अर्जुन का भयवश कृष्ण के पीछे छिपना | द्रौपदी का विलाप तथा कुन्ती एवं गांधारी का उसे आश्वासन देना

स्त्रीविलाप पर्व

| गांधारी का कृष्ण के सम्मुख विलाप | दुर्योधन व उसके पास रोती हुई पुत्रवधु को देखकर गांधारी का विलाप | गांधारी का अपने अन्य पुत्रों तथा दु:शासन को देखकर विलाप करना | गांधारी का विकर्ण, दुर्मुख, चित्रसेन तथा दु:सह को देखकर विलाप | गांधारी द्वारा उत्तरा और विराटकुल की स्त्रियों के विलाप का वर्णन | गांधारी द्वारा कर्ण की स्त्री के विलाप का वर्णन | गांधारी का जयद्रथ एवं दु:शला को देखकर कृष्ण के सम्मुख विलाप | भीष्म और द्रोण को देखकर गांधारी का विलाप | भूरिश्रवा के पास उसकी पत्नियों का विलाप | शकुनि को देखकर गांधारी का शोकोद्गार | गांधारी का अन्यान्य वीरों को मरा देखकर शोकातुर होना | गांधारी द्वारा कृष्ण को यदुवंशविनाश विषयक शाप देना

श्राद्ध पर्व

| युधिष्ठिर द्वारा महाभारत युद्ध में मारे गये लोगों की संख्या और गति का वर्णन | युधिष्ठिर की अज्ञा से सबका दाह संस्कार | स्त्री-पुरुषों का अपने मरे हुए सम्बंधियों को जलांजलि देना | कुन्ती द्वारा कर्ण के जन्म का रहस्य प्रकट करना | युधिष्ठिर का कर्ण के लिये शोक प्रकट करते हुए प्रेतकृत्य सम्पन्न करना

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः