इन सरवरिया री पाल, मीराँ बाई साँपड़े।
साँपड़ किया अस्नान, सूरज सामी जप करे। (टेर)
(प्रश्न) होय बिरंगी नार, डगराँ बिच हे क्यूँ खड़ी।
काँई थारो पीहर दूर, काँई घराँ सासू लड़ी।।1।।
(उत्तर) नहिं म्हारो पीहर दूर, नहीं घराँ सासू लड़ी।
चल्यो जा रे असल गँवार, तुझे मेरी क्या पड़ी।।2।।
गुरु म्हारा दीनदयाल, वे हीराँ का पारखी।
दियो म्हाँने ज्ञान बताय, संगत करस्याँ साध री।।3।।
इन सरवरिया रा हंस, सुरंग ज्याँरी पाँखड़ी।
राम मिलन कद होय, फड़के म्हारी आँखड़ी।।4।।
राम गये बनबास, साथहि सब रँग ले गये।
ले गये (म्हारी) काया को सिंगार, तुलसी की माला दे गये।।5।।
खोई कुल की लाज, मुकन्द थारे कारने।
बेगहि लीज्यो सम्हाल, मीराँ पड़ी जो बारने।।6।।[1]
राग - माड : ताल - दीपचन्दी
(लीला)