जोगिया नैं कहज्यो जी आदेस।
जोगियो चतुरसुजाँण सजनी ध्यावै संकर सेस। (टेर)
माला मुद्रा मेखला रे बाला, खपरा लागी हाथ।
जोगण होइ जुग ढूँढसूँ, म्हारा रावलिया री साथ।।1।।
करि किरपा प्रतिपाल मो परि, राखै नैं अपनैं देस।
आऊँगी मैं नाँ रहूँगी, म्हारा पीव बिना परदेस।।2।।
साँवण आवण कह गयो रे बाला, करि गयो कोल अनेक।
गिणताँ गिणताँ घसि गई सजनी, आँगलियाँ री रेख।।3।।
प्राण हमारा वहाँ बसै जी बाला, यहाँ है खाली खोड़ि।।
मात पिता परिवार सूँ जी, हूँ रही तिणका ज्यूँ तोड़ि।।4।।
पीव कारण पीली पड़ी रे, जोबन गया बाली बेस।
दासि मीराँ राम भजि कैं, तन मन कीन्हौं पेस।।5।।[1]
राग - पहाड़ी : ताल - दादरा
(विरह)