यो तो रंग धत्ताँ हि लाग्यो हे माय। (टेक)
पिया पियाला अमरत रस का, चढ़ गई घूम घुमाय।
यो तो अमल म्हारो कबहु न उतरै, कोट करो न उपाय।।1।।
साँप पिटारा में राणाजी भेज्यो, द्यो मेड़तणी गल डार।
हँस-हँस मीराँ कण्ठ लगायो, यो तो म्हारे नोसर हार।।2।।
विष को प्यालो राणाजी मेल्यो, द्यो मेड़तणी ने पाय।
कर चरणामृत पी गई रे, गुण गोविन्द रा गाय।।3।।
पिया पियाला नाम का रे, और न रंग सुहाय।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, काचो रंग उड़ जाय।।4।।[1]
राग - सारंग घूमर : ताल - कहरवा
(प्रेमदृढ़ता)