मन रे परस हरि के चरण। (टेर)
सुभग शीतल कमल, त्रिविध ज्वाला हरण।
जे चरण प्रहलाद परसे, इन्द्र पदवी धरण।।1।।
जिन चरण ध्रुव अटल कीने, राखि अपनी शरण।
जिन चरण ब्रह्माण्ड भेट्यो, नख शिखौ श्री भरण।।2।।
जिन चरण प्रभु परसि लीने, तरी गोतम धरण।
जिन चरण काली हि नाथ्यो, गोप लीला करण।।3।।
जिन चरण धार्यो गोवर्धन, गरब मघवा हरण।
दासि मीराँ लाल गिरधर, अगम तारण तरण।।4।।[1]
राग - जोनपुरी : ताल - रूपक
(विरद चेतावनी)