तै दरद नहिं जान्यूँ, सुनि रै बैद अनारी। (टेर)
तू जा बैद घर आपणैं रे, तुझे खबर मोरी नाँहीं।
मोरे दरद को तू मरम न जाँणैं, करक कलेजा रै माँहीं।।1।।
प्राँण जाँण का सोच नहीं मोहि, नाथ दरस द्यौ आरी।
तुम दरसण बिनि जीव यूँ तरसै, ज्यूँ जल बिनि पनवारी।।2।।
कहा कहूँ कछु कहत न आवै, सुणिज्यौ आप मुरारी।
मीराँ के प्रभु कब‘र मिलोगे, जनम जनम की मैं थारी।।3।।[1]
राग - काफी : ताल - दीपचंदी
(विरह)