रमैया बिन नींद न आवै, (बिरह सतावै), प्रेम की आँच ढुलावै। (टेक)
बिन पिया जोत मन्दिर अँधियारो, दीपक दाय न आवै।
पिया बिना मेरी सेज अलूनी, जागत रैन बिहावै,
पिया कबरै घर आवै।।1।।
दादुर मोर पपीहा बोलै, कोयल शब्द सुनावै।
घुमड़ घटा ऊलर होइ आई, दामिन दमक डरावै,
नैन मोरे झर लावै।।2।।
कहा करौं कित जाऊँ मोरी सजनी, बेदन कोन मिटावै।
विरह नागिन मोरी काया डसी है, लहर-लहर जिय जावै,
जडी घसि लावै हि लावै।।3।।
को हे सखी सहेली सजनी, पिया कूँ आनि मिलावै।
मीराँ के प्रभु कब रे मिलोगे, मनमोहन मोहि भावै,
कबै हँस कर बतलावै।।4।।[1]
राग - काफी : ताल - दीपचन्दी
(विरह)