सुण लीज्यो बिनती मोरी, मैं शरण गही प्रभु तोरी। (टेक)
तुम (तो) पतित अनेक उधारे, भवसागर से तारे।।1।।
मैं सब का तो नाम न जानूँ, कोई कोई नाम उचारे।।2।।
अम्बरीष सुदामा नामा, तुम पहुँचाये निज धामा।।3।।
ध्रुव जो पाँच वर्ष के बालक, तुम दरश दिये घनश्यामा।।4।।
धना भक्त का खेल जमाया, कबिरा (का) बैल चराया।।5।।
शबरी का झूठा फल खाया, तुम काज किये मन भाया।।6।।
सदना औ सेना नाई को, तुम लीन्हा अपनाई।।7।।
करमा की खिचड़ी खाई तुम, गणिका पार लगाई।।8।।
मीराँ प्रभु तुमरे रँगराती, या जानत सब दुनियाई।।9।।[1]
राग - जोगिया : ताल - कहरवा
(चरित)