श्याम म्हाँनै चाकर राखो जी, गिरधारीलाल चाकर राखो जी। (टेक)
चाकर रहसूँ बाग लगासूँ, नित उठ दरशण पासूँ।
बृन्दाबन की कुँज गलिन में, गोविन्द का गुण गासूँ।।1।।
चाकरी में दरशण पाऊँ, सुमिरन पाऊँ खरची।
भाव भगति में जागीरी पाऊँ, तीनों बाताँ सरसी।।2।।
मोर मुकट पीताम्बर सोहै, गल बैजन्ती माला।
बृन्दाबन में धेनु चरावै, मोहन मुरलीं वाला।।3।।
ऊँचे ऊँचे महल बनाऊँ, बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया के दरशन पाऊँ, पहिर कुसूँमल सारी।।4।।
जोगी आया जोग करन कूँ, तप करने संन्यासी।
हरी भजन को साधू आये, बृन्दाबन के बासी।।5।।
मीराँ के प्रभु गहिर गँभीरा, हृदै रहो जी धीरा।
आधी रात प्रभु दर्शन दीज्यो, प्रेम-नदी के तीरा।।6।।[1]
राग - भैरवी : ताल - कहरवा
(प्रेम)