राणोंजी मेवाड़ो म्हारो काईं करसी,
म्हे तो गोबिन्द रा गुण गास्याँ, हे माय। (टेक)
राणोंजी रूससी गाँव राखसी, हरी रूस्याँ कुमलास्याँ, हे माय।।1।।
म्हारो तो प्रण चरणामृत रो, नित उठ मन्दिर जास्याँ, हे माय।।2।।
मन्दिरया में माधुरी मूरति, निरख निरख गुण गास्याँ, हे माय।।3।।
हाथाँ से करताल बजावाँ घूघरिया घमकास्याँ, हे माय।।4।।
राणोंजी भेज्या विष रा प्याला, कर चरणामृत पीस्याँ, हे माय।।5।।
राणोंजी भेज्या साँप टिपारा (पिटारा), तुलसी की माला कर पैराँ, हे माय।।6।।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, हरि चरणाँ चित ल्यास्याँ, हे माय।।7।।[1]
राग - काफी : ताल - दादरा
(आत्मेतिहास)