म्हारी सेजड़ल्याँ रँग माणूँज, म्हारी कुँजन का प्यारा पलाडूजी। (टेक)
आम्हाँ साम्हाँ महल झुकाऊँ, बिच बिच राखूँ बारी।
बारी में झाँकत म्हारे निजर पड़्या गिरधारी।।1।।
आम्हाँ साम्हाँ बाग लगाऊँ, बिच बिच राखूँ गुल-क्यारी।
आवेलो नन्दजी को लाला, टाँके फूल हजारी।।2।।
ओछा पायाँ ढोलणी, रेसम डोर बणावूँ।
तुम बिना नन्दजी का लाला, जरा नींद नहिं आवे।।3।।
हरी जरी का लहँगा सोवै, फूलझड़ी की सारी।
अनवट ऊपर बिछिया सोवै, नथ सोवे भलकाँ-री।।4।।
मथुरा वृन्दावन बिच नाँव लगाऊँ, सब सखियन को भेलो।
मीराँ के प्रभु तुम सुख पोढ़ो, यो निजराँ रो मेलो।।5।।[1]
राग - माड
(प्रेम-उत्सुकता)