म्हाँने बोल्याँ मति मारो जी राणाँ, यो लै थारो देस। (टेक)
मीराँ म्हलाँ सें ऊतरी, कोई सात सहेल्याँ माँय।
खेलत पायो काँकरो, कोई सेवा सालगराम (गिरधरराय)।।1।।
साधजी आया पावणाँ, कोई मीराँ कै दरबार।
जाजम दीनों बैसणो, कोई ढोल्यो दीनो ढाल (र)।।2।।
जैर पियालो राणाँजी भेज्यो, द्यो मीराँ नैं प्याय (हाथ)।
कर चिरणामृत पी गई मीराँ, थे जाणों दीनांनाथ।।3।।
साँप पिटारो राणाजी भेज्यो, दीज्यो मीराँ ने जा’र।
कर खँगवालो पहरियो, कोई हो गयो नोसर हार।।4।।
राणाँजी कागद भेजियो, कोई द्यो मीराँ नै जाय।
साधाँ की संगत छोड़ द्यो, मीराँ बैठो राण्याँ रै माँय।।5।।
काढ़ कटारो राणाजी भेज्यो, दूजी भेजी तरवार।
एक मीराँ की दो कराँ कोई, दो की हो गई च्यार।।6।।
राणों मीराँ से यों कहे जी, कस्यो थारो भगवान।
राज पाट सब छोड़स्याँ कोई, म्हे भी भजाँ भगवान।।7।।
कच्चो रँग उड़ जाय छै जी, पक्को रँग नहिं जाय।
मीराँ कै रँग गोपाल को जी, अब छूटण को नाँय।।8।।[1]
राग - माड : ताल - कहरवा
(चरित)