यहि बिधि भक्ति कैसे होय।
मन की मैल हिय तैं न छूटी, दियो तिलक सिर धोय। (टेक)
काम कूकर लोभ डोरी, बाँधि मोहि चण्डाल।
क्रोध कसाई रहत घट में, कैसे मिले गोपाल।।1।।
बिलार विषया लालची रे, ताहि भोजन देत।
दीन हीन व्है छुधा-रत-से, राम नाम न लेत।।2।।
आप ही आप पुजाय केरे, फूले अँग न समात।
अभिमान टीला किये बहु, कहु जल कहाँ ठहरात।।3।।
जो हिये अन्तर की जानै, तासों कपट न बनै।
हिरदे हरि को नाम न आवै, मुख तैं मनिया गनै।।4।।
हरी हितु से हेत कर, संसार आसा त्याग।
दास मीराँ लाल गिरधर, सहज कर बैराग।।5।।[1]
राग - सोरठ : ताल - रूपक
(चेतावनी)