मारत मेरे नैन में पिचकारी, मैं तो ईं साँवरजी सूँ हारी। (टेक)
नैन बचा कर डारो साँवरा, ओर बदन सब सारी।
भर पिचकारी गोरा मुख पर मारी, भीज गई सब सारी।।1।।
रतन कटोरा में केशर घोरी, हाथ लियें पिचकारी।
अबके तो रंग डार दियो है, अबके डारो दूँगी गारी।।2।।
घर मेरा दूर गागर सिर भारी, मैं नाजुक पनिहारी।
पनघट घाट छाँड़ दे कनैया, बोइयाँ मरे थारी प्यारी।।3।।
बृन्दाबन की कुसंगलिन में, भीड़ भई अति भारी।
मैं तो साँवरा ने पाई अकेली, चूरमूर कर डारी।।4।।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे, कुण्डल की छबि न्यारी।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, तुम जीते हम हारी।।5।।[1]
राग - पीलू बरवा : ताल - कहरवा
(होरी लीला)