फागुन के दिन चार रे, होरी खेल मना रे। (टेर)
बिन करताल पखावज बाजै, अनहद की झनकार रे।।1।।
बिन सुर राग छतीसूँ गावे, रोम रोम रंग सार रे।।2।।
शील सन्तोष की केसर घोली, प्रेम-प्रीत पिचकार रे।।3।।
उड़त गुलाल लाल भये बादल, बरसत रंग अपार रे।।4।।
घटके सब पट खोल दिये हैं, लोकलाज सब डार रे।।5।।
होली खेल प्यारौ पिय घर आये, सोइ पियारी पिय प्यार रे।।6।।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, चरण कमल बलिहार रे।।7।।[1]