महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
यादवों का अन्त
एक दिन बड़े-बड़े सरदार बैठे खी-पी रहे थे। सहसा महाभारत की लड़ाई का प्रसंग बातों-बातों में उठ आया। सब लोग अपनी-अपनी बहादुरी की डींगें हांकने लगे। इस पर ईर्ष्या की दूसरी लहर भी स्वाभाविक रूप से उठी। शराब के नशे में सबने एक-दूसरे की डींग को काटना और अपनी घमण्डभरी डींगों को जोर-जोर से हांकना आरंभ कर दिया। डींगों की कट्टम-कट्ट से सरदारों का क्रोध एक-दूसरे पर भड़कने लगा। होते-करते लोग इतने मुंहफट हो गये कि कृष्ण को महाभारत के युद्ध में सबसे नीच राजनीतिक व्यक्ति बतलाकर उनकी कुटिलताओं का बखान करने लगे। सात्यकि ने क्रोध में आकर निन्दा करने वाले सरदार का सिर काट डाला। एक सिर कटना था कि शराब के नशे और क्रोध की झोंक में सिर ही सिर कटने लगे। फिर कहाँ का मेला और कहाँ का रंग। सारा प्रभाव क्षेत्र यादवों के लहू से रंग गया। श्रीकृष्ण ने जब यह हाल देखा तो हस्तिनापुर को यह सन्देश भेजा कि "अर्जुन आकर हमारी स्त्रियों और बच्चों को सुरक्षित रूप से हस्तिनापुर ले जायें। यहाँ अब सब कुछ नष्ट होकर ही रहेगा।" श्रीकृष्ण की बात सच होकर रही। अर्जुन जब द्वारका पहुँचे तो यादव कुल नष्ट हो चुका था। श्रीकृष्ण भी जंगल में व्याध द्वारा मारे जा चुके थे। आस-पास की जंगली जातियों के लोग जो अब तक यादवों की शक्ति से घबरा कर छिपे-छिपे रहते थे, अब खुले आम आकर उनके नगरों को लूटने लगे और उनकी स्त्रियों तथा धन आदि को छीन कर ले जाने लगे थे। अर्जुन इस दुर्दशा को देखकर इतने दुखी हुए कि उनकी शक्ति ही बुझ गयी। उनके देखते-देखते भील लोग यादव स्त्रियों को उठा ले गये और गाण्डीवधारी अर्जुन उनका कुछ भी न बिगाड़ सके। श्रीकृष्ण, बलराम और यादवों के अन्त का दुखद समाचार पाकर पांचों भाई अपने मन के भीतर ही भीतर टूट गये। युधिष्ठिर ने कहा- “परीक्षित अब बड़ा हो गया है। उसे राजतिलक दो, और चलो हम पांचों भाई द्रौपदी सहित हिमालय में अपने आपको गला दें, इस दुनिया में हमारा काम अब पूरा हो चुका।” |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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