महाभारत कथा -अमृतलाल नागर
ध्रुव की कथा
मां-बेटा चलते-चलते स्वयंभु मनु महाराज के तपोवन में जा पहुँचे। मनु महाराज ने अपनी पुत्रवधु से सारा हाल सुना और ध्रुव को उचित शिक्षा दी तथा कहा- “तुम मधुवन में जाकर तप करो। तुम्हें संसार में सबसे ऊंचा पद मिलेगा।” बाबा के पैर छूकर और मां से आशीर्वाद लेकर बालक ध्रुव दृढ़ निश्चय के साथ प्रभु का नाम जपता हुआ मधुवन पहुँच गया। उसने वहाँ सारे नियम साधने शुरु किये और जी लगाकर भगवान का नाम जपने लगा। उसने इतनी सच्चाई के साथ योग के नियमों का पालन किया कि उसकी ज्ञान शक्तियां जागे बिना रह न सकीं। ध्रुव अनुभव करने लगा कि अब जंगल के जानवार भी उसे प्यार करने लगे। उसे शेर से भी उतना प्यार था जितना मामूली कीड़े से। ध्रुव ने देखा कि सब लोग उसकी बात सुनते और मानते हैं। ध्यान से बुद्धि सधने लगी, दृष्टि पैनी हुई और धीरे-धीरे रात के तारों भरे आकाश में अपनी नजर साधते-साधते देखा कि और सब तारे तो चलते हैं, मगर एक नन्हा-सा तारा अपनी जगह पर अटल है। बस, इसी नन्हें तारे से योग रचाकर उसने अपनी तपस्या और बढ़ायी। लगन और मेहनत से धीरे-धीरे वह दिन भी आ पहुँचा जबकि उसने परमपिता परमात्मा का प्रकाश अपने अन्दर देख लिया। बालक ध्रुव की ख्याति अब चारों ओर फैलने लगी। आकाश के उस नन्हें अटल तारे का नाम भी ध्रुव रख दिया गया। भीष्म पितामह बोले कि जब किसी के मन में किसी अच्छे काम के लिए सच्ची लगन लग जाती है तो वह अवश्य सफलता सिद्ध करता है, चाहे वह बच्चा हो या बूढ़ा। ध्रुव की कथा सुनाकर भीष्म पितामह ने स्वयंभु मनु के दूसरे बेटे प्रियव्रत के वंश के सम्बन्ध में बतलाना आरम्भ कर दिया। |
टीका-टिप्पणी और संदर्भ
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