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भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
भगवान का मंगलमय स्वरूप
भगवान शंकर मानो आनन्दकन्द श्रीकृष्णचन्द्र का अर्चन कर रहे हैं और भगवान के चरणों में नतमस्तक होकर नखमणिचन्द्रिका निहारते हुए उन दिव्य निर्मल नखमणियों में अपनी ही मूर्ति समायी हुई देख रहे हैं। कवि कल्पना करते हैं कि जिनके पदनखों में गिरीश की मूर्त्ति समायी हुई है, मानों दश नखमणियों में दश रुद्र और एकादश स्वयं निहारने वाले, इस प्रकार एकादश रुद्र हो रहे हैं, ऐसे गिरीश जिनकी उपासना करते हैं, उन नन्द-मन्दिर में विराजने वाले परमाद्भुत चमत्कारकारी अनिर्वाच्य ‘कंचित’ को मैं प्रणाम करता हूँ। यहाँ भगवान श्रीशंकर को पदनखनिविष्टमूर्तिक रूप में देखकर कोई यह न समझे कि भगवान शंकर भगवान श्रीकृष्ण से कुछ निन्म या भिन्न हैं। दोनों अभिन्नहृत् और एक-दूसरे के आत्मा हैं। श्रीशंकर कौन हैं और शंकरतत्त्व क्या है, यही प्रश्न श्रीकृष्ण के सामने युधिष्ठिर ने श्रीभीष्म जी से किया था। उस समय भीष्म जी ने यही उत्तर दिया कि शंकर तत्त्व अति गूढ़ है, मैं उसके कहने में असमर्थ हूँ, श्रीकृष्ण ही उस तत्त्व का प्रतिपादन कर सकते हैं। श्रीकृष्ण ने शिवतत्त्व बताया पर यही कहकर कि यह तत्त्व अत्यन्त दुरवग्राह्य है और मैं जो कुछ कहूँगा, श्रीशंकर की कृपा से ही कह सकूंगा। भगवान रामचन्द्र का जब अवतार हुआ तब यह कथा प्रसिद्ध है कि श्रीशंकर जी श्रीरामचन्द्र जी के यहाँ पौराणिक वेश में गये थे और रामचन्द्र को पुराण सुनाते थे। एक बार रामभद्र के कहने पर जब पौराणिक श्रीशंकर शिवतत्त्व का प्रतिपादन करने लगे तब पौराणिक श्रीशंकर की मूर्ति रामभद्र रूप में और रामभद्र की मूर्त्ति श्रीशंकर के रूप में सबको दिखायी दी। श्रीविष्णु और श्रीशिव यथार्थ में परस्परात्मा हैं, यही बात समझनी चाहिये। इनके जो वर्ण हैं वे भी इसी बात को सूचित करते हैं। श्रीशंकर तमोगुण की अधिष्ठाता हैं पर उनका वर्ण काला नहीं, शुभ्र है और सत्त्व के अधिष्ठाता श्रीविष्णु का वर्ण शुभ्र नहीं, श्याम हैं। यह क्या बात है? यह ध्यान का प्रकर्ष है। श्रीशंकर श्रीविष्णु का ध्यान करते हैं इस कारण उनका वर्ण शुभ्र है और श्रीविष्णु श्रीशंकर का ध्यान करते हैं इस कारण उनका वर्ण श्याम है। यह एक-दूसरे के अभिन्नहृत् प्रेम ध्यान का ही प्रकर्ष हैं। श्रीशंकर भगवान की शुभ्र दिव्य मूर्त्ति पदनखमणियों में जो झलक रही है वह इन पद-नखों की दिव्यातिदिव्य स्वच्छता का द्योतन है। इन नखों के पार्श्व और अग्रभाग में जो अरुणिमा है उससे यह स्वच्छता किंचित् अरुण हो रही है। ऊपर चरणों के पृष्ठभाग नीलिमा, पृष्ठ और नखों की सन्धि की अरुणिमा और पदनखों की स्वच्छता इन तीनों का यह त्रिवेणी संगम परम भावुकों के ही अवगाहन करने का दुर्लभ स्थल है। यहाँ की यह शोभा इसके साथ वनमाला और तुलसिका तथा कुंकुम-कस्तूरी-मिश्रित हरिचन्दनादि से युक्त दिव्य अष्टसौगन्ध्य परम भाग्यवानों को ही प्राप्त होता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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