नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
87. महाभानु बाबा-कुरुक्षेत्र से लौटे
प्रातः हम सब पहिले से शीघ्र उठने के अभ्यासी हैं। अब तो जैसे निद्रा ही कठिनाई से आती है। गोष्ठों की सम्हाल करनी है। गायों के साथ स्वयं वन जाना है। ग्रास मुख में डालने पर बाहर निकलना चाहता है, गले में नीचे उतरता ही नहीं तो कोई भोजन क्या करेगा। हमारी गृहणियों ने अब अपना पूजा-पाठ बढ़ा लिया है। उन सबके भी व्रत ही चलते रहते हैं। इस क्रम से हमने कैसे यह समय व्यतीत किया, वर्णन कर पाना कठिन है। एक-एक दिन एक कल्प लगता था। प्रातः से छटपटाते प्राण प्रतीक्षा करते थे- कब सायंकाल हो और सूर्यास्त के साथ ही सूर्योदय होने की छटपटाहट प्रारम्भ हो जाती थी। ग्रीष्म के वे दिवस भी किसी प्रकार व्यतीत ही हुए। अचानक नन्दराय के महावृषभ धर्म ने हुंकार की ओर दौड़ पड़ा। वृद्ध धर्म- बहुत शिथिल गाय; किंतु उस दिन की उसकी हुंकार- वह दौड़ना जीवनभर स्मरण रहेगा। दौड़ पड़े सब वृषभ, गायें, बछडे़। कपि कूदे और मयूर हर्ष में भरकर कूके। हमारे शरीर में मानों नवीन प्राण आया। नन्दराय लौट रहे थे। उनके साथ के सब छकड़े व्रज की सीमा के समीप आ गये थे। हम सब भी तीर्थ यात्रा से लौटे स्वजनों का स्वागत करने दौड़े। कुरुक्षेत्र में मेरे अनुमान के अनुसार राम-श्याम आये थे। अपने परिवार, पुत्र, पुत्रवधुओं के साथ आये थे। बड़े स्नेह से सोत्साह मिले और साग्रह व्रज के शिविर को द्वारिका के शिविर के समीप ले गये। यह सब तो होना ही था। श्रीदाम ने, सुबल ने, स्वयं नन्दराय ने, गोपों ने सब सुनाया। मझे आशा थी कि वे यहाँ की बालिकाओं को अब आने नहीं देंगे। इनको अवश्य द्वारिका ले जायँगे। इनके इतनी अधिक रानियाँ हैं, ये उन्हें भारी नहीं पड़ेंगी। उन्होंने प्रयत्न ऐसा ही किया। उस नीलसुन्दर का कोई दोष नहीं है। वह इतना शीलवान है कि वह किसी सेवक तक की तो उपेक्षा कर नहीं पाता, इन बालिकाओं की कैसे उपेक्षा कर सकता था। वह आग्रह-अनुनय सब करके हार गया। सुबल ने मुझे सब सुनाया है- ये ही सब उसके साथ नहीं गयीं। इन्होंने किसी प्रकार द्वारिका जाना स्वीकार नहीं किया। वह तो इनके लिये पृथक नगर-निर्माण करा देने को प्रस्तुत था। मेरी लाली राधा बहुत मानिनी है। वह न जाय तो उसकी कोई सखी जा नहीं सकती। सब उसी से चिपटी रहती हैं। उसी में हम सबके प्राण बसते हैं। वह आ गयी तो बरसाने में जीवन आ गया। वह न आती तो? सोचकर ही हृदय फटने लगता है। लेकिन लड़की पराये घर की सम्पत्ति है। हम सब किसी प्रकार रह ही लेते, वह तो सुखी रहती। |
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