नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
62. शनैश्चर-ढुण्ढा की होली
'तुम सब गाली क्यों बक रहे हो?' भद्र ने पहुँचते ही सखाओं को डाँटा।' 'दारी राक्षसी आयी थी। वह प्रह्लाद को जलाने वाली होलिका।' बालक होलिका को गाली दे रहे थे और 'नरहरि नख लाल। प्रह्लाद प्रतिपाल।' का बीच-बीच में कीर्तन करते थे। मधुमंगल ने ही कहा- 'हमने उसे फूँक दिया।' 'राक्षसी?' समीप का गोप सुनते ही चौंका- 'राक्षसी कहाँ से आ गयी? कैसी राक्षसी?' गोपों में आशंका फैलने लगी। बालक अपने उत्साह में बतलाने में लगे हैं कि कितनी भारी राक्षसी थी और उन्होंने उसे फूँक दिया। 'वह ढुण्ढा थी!' महर्षि शाण्डिल्य स्वतः आ गये थे केवल अपने तीन शिष्यों के साथ। उन्होंने व्रजराज को आश्वस्त कर दिया- 'भद्रामुख में होलिका-दहन बलि लेता है, वह बालकों ने दे दी। अब आहुति दे दो।' उसी अग्नि में सहस्रों धृत कुम्भ की धाराएँ पड़ने लगीं और सभी गोप अंजलियाँ भरकर अन्नाहुति डालने लगे। मेरी दृष्टि अब वहाँ से स्वतः हट गयी। वहाँ का मेरा कार्य पूर्ण हो गया। किंतु श्रवण मेरे सदा इधर लगे ही रहेंगे। राक्षसी के दहन के कारण अथवा मेरी दुर्निवार अशुभ दृष्टि पड़ने से- मैं कह नहीं सकता कि प्रभाव किसका पड़ा। प्रातः सब बालक एक साथ वहाँ आ गये। उन्होंने पहले अग्नि को बड़े लकुट लेकर कुछ अस्तव्यस्त किया यह देखने को कि राक्षसी जीवित होकर भाग गयी या नहीं। उसके शरीर के कुछ अवशेष देखकर आश्वस्त हो गये। अब इतना काष्ठ, इतना अन्न पड़ा उसमें, घृत कितना भी पड़ा हो, यह तो कई दिनों जलेगा ही। बालकों में-से श्यामसुन्दर ने ही किनारे से शीतल भस्म उठायी और श्रीदाम के मुख पर मल दिया। सब बालक राक्षसी को गाली दे ही रहे थे, अब परस्पर भस्म उछालने-मलने लगे। भस्म गोबर-मिट्टी तक बढ़नी ही थी और उसमें पानी मिल गया तो कीचड़ बन गयी। इस प्रकार होलिका-दहन के धूलि-वन्दन में गाली और कीचड़ प्रवेश पा गया। |
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