नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
6. माता रोहिणी-दाऊ का जन्म
व्रजपति ने जातकर्म संस्कार सविधि कराया। अन्तत: ये मेरे स्वामी के भाई ही तो हैं। सहस्रों गोदान किया इन्होंने। गोपों और गोपियों ने वह आनन्द-मंगल मनाया कि मुझे उसका वर्णन सुन-सुनकर उठकर उसमें सम्मिलित होने का उत्साह होता था। व्रजेश्वरी यशोदा ने आज मेरे गोकुल आने के पश्चात से सम्पूर्ण श्रृंगार पहिली बार धारण किया था। इनके अपने ही पुत्र हुआ हो, इतना उल्लास और इतना ही उल्लास तो था एक-एक गोपी में। 'उत्सव अभी नहीं! कंस को समाचार नहीं मिलना चाहिए!' मैंने व्रजपति को, उपनन्दजी को तथा अन्यों को भी उच्चस्वर से कहते सुना; किंतु सब नृत्य कर रहे थे- वृद्ध उपनन्द तक और वाद्य गगन गुञ्जित कर रहे थे। यह इनका 'उत्सव नहीं।' वाला उत्सव था। भगवती पूर्णमासी ने मुझसे षष्ठी-पूजन के पश्चात कहा था- 'बुधवार को मध्याह्न के समय तुला लग्न में स्वाती नक्षत्र के द्वितीय चरण में यह कुमार हुआ है। तुला ही राशि है। लग्न में चन्द्रमा,शुक्र तथा शनि हैं। कर्क में गुरु दशम में, सिंह का सूर्य एकादश में, कन्या का बुध द्वादश में, मकर का मंगल चतुर्थ में, सिंह का राहु एकादश में तथा कुम्भ का कुतु पञ्चम में है। मंगल, बुध, गुरु तथा शनि उच्च के ये चार ग्रह हैं। सूर्य, बुध, शुक्र स्वगृही हैं।[1] यह अतिमानव नित्य, योगश्वर, सर्वगुरु, सर्वसदगुणैकधाम है तुम्हारा शिशु।' मैंने अनुरोध करके किसी प्रकार यशोदा को और व्रजपति को प्रस्तुत किया कि इस शिशु के संस्कारों को अभी वे रहने दें। इतने पर भी इसकी बरही, भूमिस्पर्श, दुग्धपान संस्कार उन्होंने सम्पन्न कराये। स्वयं यशोदा ने इसे दक्षिणावर्त शंख से दूध पिलाकर इसका धात्री होना अपने लिए सौभाग्य माना। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गर्ग संहिता में पाँच ग्रह उच्च के कहे गये हैं; किंतु वहाँ तुला लग्न तथा स्वाती नक्षत्र का भी उल्लेख है। अत: चन्द्रमा तुला में ही रहेगा। सूर्य भाद्रपद में मेष का सम्भव नहीं। शुक्र भी उसके समीप ही रहेगा। अत: पाँच ग्रह उच्च के होने असम्भव हैं।
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