नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
56. गणेश-गोचारण
बहुत आशंकाएँ हैं- इतनी कि कोई गणना नहीं; किंतु उपाय भी कुछ नहीं है। व्रजेश्वरी ने कभी अपने स्वामी का प्रतिवाद नहीं किया। व्रजराज की इच्छा को सदा सुप्रसन्न स्वीकार किया है। कितना भी कड़ा करें अपना हृदय; पर जानती हैं कि महर को मना करने के लिए मुख नहीं खुलेगा। अब मना करना सम्भव भी नहीं है। बड़े जेठ ने 'हाँ' कर दिया तो बात समाप्त हो गयी। उनकी बात व्रज में वेद-वाक्य ही है। अब तो महर्षि ने मुहूर्त्त भी निश्चित कर दिया है। 'महर करते भी क्या? मोहन हठ पकड़ लेता है तो मानता है? कह तो रहे थे कि गोष्ठ में जा खड़ा हुआ कि सब पशुओं को ले जायेगा। पूजन करके प्रारम्भ करेगा, यह मान गया, इतना ही बहुत हुआ।' कल से गोचारण प्रारम्भ होना है। आज गोपकुमार पूरी उमंग में हैं। श्रीकृष्णचन्द्र सखाओं के साथ वन में मयूरपिच्छ ही नहीं, हंस, शुकादि के पंख भी संग्रह करने लगे हैं- 'यह कामदा के लिए। यह नन्दिनी को। यह अरुणा के कण्ठ में अच्छा लगेगा।' गुञ्जा, मणियाँ, पुष्प, पल्लवादि के संग्रह में सब पूरे दिन व्यस्त रहे। आज कोई अन्य क्रीड़ा किसी को सूझती ही नहीं। वन से लौटकर भी राम-श्याम तथा सखागण अपना-अपना संग्रह मैया को, माता रोहिणी को, व्रजराज को, सब बड़े गोप-गोपियों को दिखलाते दौड़ते रहे। सब अपने संग्रह को सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। नन्दीश्वपुर और वृहत्सानुपुर में सब बालकों का गोचरण संस्कार कल ही होना है। यह संस्कार पृथक-पृथक करने की न प्रथा है और न यह सम्भव है। दोनो ग्रामों के मध्य में वृहत मण्डप गोपों ने बना दिया है। गोप-गोपियाँ सब व्यस्त हैं- व्यस्त रहे हैं दिनभर और पूरी रात्रि ऐसे ही व्यस्त रहना है। भवन, द्वार, मार्ग, मण्डप सब सज्जित हो चुके हैं; किंतु अभी तो बहुत काम पड़ा है। उपलिप्त पथ-वीथियाँ, कलश, कदली स्तम्भ, प्रदीप सज्जद्वार, तोरणालंकृत, नाना रंगों से सुचित्रित पथ, ध्वज-पताकाएँ-तोरण-पुष्प-माल्यादि की सज्जा सम्पूर्ण हो गयी; किंतु कल यज्ञ होगा, समस्त पशुओं की, पशु-पालकों की पूजा होगी देव एवं विप्र पूजन के पश्चात। रात्रि पूरी इस प्रस्तुति में लगनी है। |
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