नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
55. ब्रह्मा-विधि-व्यामोह
प्रात:काल माता रोहिणी ने सन्देह किया- 'नीलमणि! आज तेरा कोई सखा नहीं आया अब तक? सुना भद्र भी कल अपने भवन में सोया?' भद्र शैशव से व्रजराज के समीप सोता रहा, वह अपना भवन ही नहीं जानता था। कल उसे क्या हो गया? लेकिन श्यामसुन्दर के समीप सबका उत्तर है। ये अधिक प्रसन्न हैं- 'भद्र मुझसे रूठ गया होगा। मैं अब सबको श्रृंग बजाकर जगाऊँगा। सब आलसी हैं, अभी सो रहे होंगे।' अग्रज के साथ निकले आज और श्रृंग अधरों से लगाकर गूँजने लगा। बछड़े पथ पर आये और उनके पीछे हँसते- परस्पर कुछ कहते बालक। अब यह क्रम तो चल पड़ा। प्रतिदिन का यही क्रम। श्रीव्रजेश्वरी बहुत कहती हैं- तुम सब मध्याह्न में लौट आया करो। दिन भर वन में रहकर तेरे सखा श्रान्त हो जाते हैं। क्षुधातुर होते हैं। कोई अब न प्रात: यहाँ आता, न सायं आ पाता।' श्रीनन्दनन्दन को माता का मना करना स्वीकार नहीं। केवल इनके अग्रज मौन हैं इस विषय में। इन अनन्त की यह गम्भीर भंगी मुझे आतंकित करती है। उत्पत्ति के क्षण से वीतराग, दूसरों को भी प्रवृत्ति के विरुद्ध परामर्श देने का व्यसनी मेरा मानस-पुत्र नारद क्यों इन गोप-बालकों के विवाह के लिए ऐसा उत्सुक हो उठा है? इसने तो पूरे व्रज में प्रचार ही प्रारम्भ कर दिया- विवाह का इतना उत्तम मुहूर्त आगामी बारह वर्षों में नहीं आना है। इसी वर्ष बालकों का विवाह कर दो।' वैसे ही गोप जाति शिशुओं का विवाह-सम्पन्न कर देने में प्रसिद्ध है। अब नारद के प्रचार के कारण केवल वृषभानुजी ने अपनी नन्दिनी का विवाह नहीं किया, कुछ सखियाँ रह गयीं उसकी और नन्दनन्दन अविवाहित रहे- यह आश्चर्य नहीं है। अग्रज से पूर्व इनका विवाह व्रजराज कैसे कर दें? मथुरा में कंस का आतंक रहते अभी वसुदेवजी राम के विवाह की बात सोचेंगे भी नहीं और क्षत्रिय-कुमारों का विवाह तो उनके समर्थ हो जाने पर ही शोभा देता है। नंद के व्रज के अन्य सब बालकों का विवाह हो गया। 'कनूँ! यह सब क्या है?' मैं भयाक्रान्त काँप उठा जब मैंने भूतकाल के साक्षात्कार के प्रयत्न में देखा कि भगवान संकर्षण आज प्रथम प्रहर में ही वन में अपने अनुज की ओर सशंक देखकर पूछने लगे। मुझे भूल ही गया कि यह भूतकाल का दृश्य है और भय का अब कोई कारण नहीं है। |
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