नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
54. कालिन्दी-वन-भोजन
साधारण बात है किसी की ओर कर बढ़ा कर फिर वह ग्रास अपने अथवा समीप के अन्य सखा के मुख में देकर हँस पड़ना। ऐसे ही इनके कर पर रखा ग्रास उठाकर कोई हँस सकता है- 'अब तू क्या खायेगा?' कोई कर पर ग्रास रख ही दे उसी क्षण, क्या आवश्यक है? कहने वाले के छीके से भी कुछ उठा लिया जा सकता है और संकेत पाकर उसका पूरा छीका कोई सखा अपने सम्मुख धर लेगा। 'ब्राह्मण को दिये बिना स्वयं भोजन करना दोष माना जाता है!' मधुमंगल ने अपना पाण्डित्य प्रकट किया। 'भूल हो गयी मुनिवर!' भद्र हँसा- 'किंतु अब तो अपराध क्षमा करें! हम गोपकुमार उच्छिष्ट आपको दे नहीं सकते। आप भी उच्छिष्ट कैसे खायेंगे! ब्राह्मण व्रतनिष्ठ होते हैं और आप व्रत न करें तो किसी वृक्ष पर से फल तोड़ने का कष्ट कर लें!' 'इस भोले भद्र की सुनो!' मधुमंगल ने मुख गम्भीर बनाया- 'इसे इतना भी पता नहीं कि वृन्दावन में यमुना-पुलिन पर श्रीकृष्ण के सान्निध्य में कुछ उच्छिष्ट नहीं होता। मिष्टान्न भी कहीं उच्छिष्ट हुआ करता है। तुम सब केवल मोदक-मिष्टान्न प्रदान करो। श्रद्धा-सहित आये पदार्थ को ब्राह्मण कभी अस्वीकार नहीं करता। मैं तुम सबको आशीर्वाद दूँगा।' 'इसका पेट तो मुख के मार्ग से भर नहीं रहा था। अब यह सीधे उदर में प्रविष्ट करने लगा है।' तोक ने मधुमंगल की नाभि में दधि-भात भर दिया और हँसने लगा है। सब खिलखिलाकर हँस रहे हैं। मधुमंगल अपने उदर की ओर देखने लगा, इतने में उसके सम्मुख मोदकों की राशि रख दी सब ने। दधि-भात का ग्रास सखा की ओर बढ़ाकर श्याम ने अपने मुख में डाल लिया और अब उसे अँगुली दिखाते हैं- 'तू इसे चाट ले!' वह इनकी सुकुमार दधि-मण्डित अँगुली मुख में लेने का ऐसा अवसर क्यों चूक जाए! |
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