नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
40. नन्दन चाचा-वृन्दावन की ओर
'मैं अकेले नहीं खाता। तू भी खा!' मेरे मुख हटा लेने पर हँसेगा, तनिक-सा मुख में डालेगा और फिर मैं मोदक या माखन इसकी मुट्ठी सहित मुख में ले लूँगा। यह हँसेगा, दूसरा हाथ भी मुख में डालना चाहेगा अथवा मेरे श्मश्रु में नचावेगा। 'तुम लोग भी तो कलेऊ ले लो!' रानी भाभी अनेक बार आग्रह कर चुकीं। 'मेरा पेट तो मेरे इस मोहन ने भर दिया है।' मैं सच ही कहता हूँ- 'औरों को कलेऊ करने के लिए आगे स्थान निश्चित किया है बड़े भैया ने। आपका यह मल्ल देवर तो खड़े-भागते भी खा लेता है। कलेऊ तो करना था कालिन्दी कूल पर और वहाँ समीप से ही सेतु द्वारा सबको यमुना पार होना था। बालकों को यहाँ सम्हालना सबसे अधिक आवश्यक हो गया; क्योंकि शकट जैसे ही रुके, सब नीचे उतर पड़े और यह देखने भागे कि आगे क्या है? गायें भी तृण चरना भूलकर कन्हाई के शकट की ओर ही दृष्टि लगाये हुंकार करती चलती आयी हैं। इन्हें भी कालिन्दी पार करके चरने को प्रेरित करना पड़ेगा; किंतु यह कन्हाई भागा जा रहा है आगे। यह तो कूदता-पुकारता जा रहा है- 'भद्र! तोक! मधुमंगल! विशाल! अर्जुन!' ये सब बालक ऐसे मिलकर प्रसन्न हैं जैसे वर्षों के पश्चात् मिले हों। अब श्याम अपने बाबा के समीप पहुँच गया है। भैया नन्दराय इन सबको सम्हाल लेंगे। मैं गायों को पार उतारने का प्रबन्ध कर सकता हूँ। गायों के लिए तो सेतु बन नहीं सकता था। यह नौकाओं का सेतु शकटों को, हम सबको पार पहुँचने का साधन है। गायें तो तैरकर ही पार होंगी। श्याम बहुत चञ्चल है। वह सखाओं के साथ सेतु पर भाग गया। भैया नन्दराय पुकार रहे हैं- 'नीलमणि! राम! सब तनिक रुको! मुझे समीप आने दो।' भैया इन बालकों के साथ दौड़ तो नहीं सकते। मुझे ही कन्हाई को सम्हालना पड़ेगा। यह तो समीप आते ही पूछने लगा है- 'यह नौकाएँ डूबती क्यों नहीं? जल पर सेतु कैसे बना? इनके मध्य से तो बीच-बीच में जल बह रहा है? यह सेतु इतना क्यों हिलता है?' अब इनके प्रश्नों की सीमा नहीं है। इसकी समझ में यह कैसे आ सकता है कि गायें सेतु पर-से क्यों नहीं आ रही हैं। वे जल में स्नान करेंगी तो यह क्यों नहीं कर सकता और गायें डूबती नहीं तो यह भी क्यों उनके समान तैर नहीं सकता। |
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