नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
40. नन्दन चाचा-वृन्दावन की ओर
कपियों, भल्लूकों को अधिक सुविधा है वृक्षों पर बैठकर कन्हाई को देखने में। ये ही नहीं, केहरी और व्याघ्र तक श्याम के समीप बढ़ आये होते यदि हमारी गायों ने उनको यूथ में आने दिया होता। श्याम बार-बार नन्हें कर हिलाकर मुझे समीप बुलाता है- 'चाचा! वह कौन है?' कभी किसी पशु का नाम पूछना है इसे, कभी किसी पक्षी का। कभी किसी को पकड़ना चाहता है, कभी किसी को कुछ खिलाने को उत्सुक होता है। जब अपनी मैया या माँ से पूछकर नहीं जान पाता, कहकर नहीं करवा पाता तो मुझे बुलाता है। 'मैं वह बिल्लियाँ लूँगा!' दोनों भाभियाँ हँस रही हैं। यह अवश्य उनसे माँगकर खीझने के पश्चात् मुझसे हठ कर रहा है। व्याघ्र अपनी संगिनी और दो शिशुओं के साथ आया है। श्याम उसके बच्चों को पकड़ना चाहता है। 'लाल! वे बिल्लियाँ नहीं हैं। वे उस बड़े व्याघ्र के बच्चे हैं!' मैं जानता हूँ कि मेरा समझाना यह नहीं सुनेगा। मैं उन बच्चों को उठाकर इसे दे सकता हूँ; इसमें व्याघ्र-दम्पति आपत्ति नहीं करेंगे, इतना पता है मुझे; किंतु कठिनाई यह है कि तब वे दोनों भी कन्हाई के शकट के समीप आना चाहेंगे। इसमें गायें उत्तेजित होकर उनको आहत कर दे सकती हैं। पशुओं को सब स्नेहशीलों का स्नेह समझाया तो नहीं जा सकता। 'मैं उन्हें लूँगा! नीलमणि अब मुझसे मचलने लगा है। इसे तो व्रजेश्वरी भाभी ही मना सकती हैं। 'तू उनको पकड़ेगा तो उनकी वह मैया रोयेगी!' मेरी विवशता पर भाभी को दया आ गयीं। उन्हें भी भय तो है ही कि उनका यह लाल शकट से उतरने का आग्रह न करने लगे। कोई रोये, दु:खी हो यह हमारा युवराज नहीं सह पाता। यहीं से हाथ हिलाकर व्याघ्र-दम्पति को यह आश्वासन देने लगा है कि उनके बच्चों को नहीं पकड़ेगा। अब इसके कर मोदक उन बच्चों तक पहुँचा देने में मुझे क्या आपत्ति है। कलेऊ तो बालकों को चलते शकटों पर ही कराना था; किंतु सभी आज भूख-प्यास भूल गये हैं। प्रथम बार कानन देखा है इन्होंने। नवीन वृक्ष, लताएँ, फल-पुष्प, किसलय, पशु-पक्षी- इतने आकर्षण हैं इनके लिए कि भाभी ने जब कुछ राम या श्याम को खिलाना चाहा, वह किसी पशु या पक्षी का भाग बन गया। मैंने समीप जाकर अनेक प्रयत्नों के पश्चात् नीलमणि को कुछ खिलाया। |
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