नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
20. कुबला चाची–शैशव
'कोई पक्षी किसी वस्तु में चोंच नहीं लगाता।’ जीजी सचिन्त कहती हैं- 'किंतु मुझे तुममें कोई शिशुओं के समीप न हो तो सावधान रहना पड़ता है। पक्षी ही हैं, कोई भी चञ्चु चला दे सकता है और शिशु तो समझने से रहे। इन सबको पक्षियों के साथ खेलने में आनन्द आता है। नीलमणि अभी देहली नहीं पार कर पाता। हम सब प्रोत्साहित करती हैं। दाऊ बार-बार उठाने का यत्न करता है। यह अपने अनुज की सहायता को सदा आ जाता है; किंतु आज कन्हाई ने देहली पार कर ली है इस मयूर के पीछे घुटनों चलते हुए। यह तो होना ही था कि देहली के समीप बैठकर, उस पर लेटकर हाथों के सहारे बहुत सम्हालकर पार कर सका है। मेरे तो प्राण पलकों में अटके थे। मैंने रोक तो दिया था हाथ पकड़कर जीजी को संकेत से; किंतु हृदय धड़क रहा था। कहीं यह सुकुमार गिर गया तो? अब यह मयूर को भूल गया है। कितने ध्यान से देहली को देख रहा है। 'आज इसे किसी की सहायता के बिना पारकर लिया है। कितनी अधिक ऊँची है।' अब इसे दुबारा पार करेगा। पार करना जो आ गया है इसे। हम दोनों को चुपचाप देखना है। बहुत प्रिय है इसे पानी। एक बूँद पानी भी मिल जाय तो उसे अपने हाथों से फैलाता रहेगा। अभी दो बार देहली पार करने का कड़ा परिश्रम कर चुका है; किंतु अब पानी पा गया तो सब भूल गया। एक छोटे जलपात्र को लुढ़का दिया इसने और अब दोनों भाई उसमें हाथ-पैर उछालकर आनन्द मना रहे हैं। यह आया भद्र। अब विशाल, अर्जुन, ॠषभ- कोई क्यों दूर रहेगा। सब एक-से हैं। सब हाथ भिगाते हैं और किसी के उदर, कन्धे, कपोल को उससे आर्द्र करके हँसते हैं। कैसे निश्चन्त बैठे हैं ये सब। 'अरे, तुम सब भगने लगे हो?' यह रोहिणी जीजी बालकों पर भी अंकुश रख लेती हैं; किंतु इस समय तो ये सब इनकी ओर देख-देखकर हँस रहे हैं, किलक रहे हैं। इनकी समझ से कोई बड़ा पुरुषार्थ कर रहे हैं सब। रोहिणी जीजी एक-एक का अंग अञ्चल से पौंछने में लगी हैं और यह चपल नीलमणि अपनी भीगी लाल हथेली इनके ही कपोल पर लगाकर इनके कण्ठ से लिपट गया है। व्रजेश्वरी जीजी कहती हैं- 'इनके मुख पर रोष तो कभी आता ही नहीं। ये सब शिशु इनसे इसी से इतने धृष्ट बन गये हैं। |
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