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और कौन आपका प्यारा है?
जिस भक्त से दूसरों को उद्वेग नहीं होता और जिसको खुद भी दूसरों से उद्वेग नहीं होता, ऐसा हर्ष, ईर्ष्या, भय और उद्वेग से रहित भक्त मेरे को प्यारा है।।15।।
और कौन आपका प्यारा है भगवन्?
जो अपने लिये किसी भी वस्तु, व्यक्ति आदि की आवश्यकता नहीं रखता, जो बाहर-भीतर से पवित्र है, जो दक्ष (चतुर) है अर्थात् जिसके लिये मनुष्यशरीर मिला है, वह काम (भगवान् को प्राप्त करना) उसने कर लिया है, जो संसार से उपराम रहता है, जिसके हृदय में हलचल नहीं होती तथा जो भोग और संग्रह के लिये किये जाने वाले सम्पूर्ण कर्मों का सर्वथा त्यागी है, ऐसा भक्त मुझे प्यारा है।।16।।
और कौन आपका प्यारा है?
जो न तो अनुकूलता के प्राप्त होने पर हर्षित होता है और न प्रतिकूलता के प्राप्त होने पर द्वेष करता है तथा जो न दुःखदायी परिस्थिति के प्राप्त होने पर शोक करता है और न सुखदायी परिस्थिति की इच्छा ही करता है तथा जो शुभ-अशुभ कर्मों में राग-द्वेष का त्यागी है, ऐसा भक्त मुझे प्यारा है।।17।।
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