यहाँ आपसे कोई बचेगा कि नहीं?
तेरे प्रतिपक्ष में जितने योद्धालोग खड़े हैं, वे सब तेरे युद्ध किये बिना भी नहीं रहेंगे। ये सब-के-सब मेरे द्वारा पहले से ही मारे हुए हैं। इसलिये तू युद्ध के लिये खड़ा हो जा और यश को प्राप्त कर तथा शत्रुओं को जीतकर धन-धान्य से सम्पन्न राज्य को प्राप्त कर।
तो फिर मुझे युद्ध करने की क्या जरूरत है?
हे सव्यसाचिन्! तू केवल निमित्तमात्र बन जा।।31-33।।
परन्तु महाराज! भीष्म, द्रोण, जयद्रथ, कर्ण आदि शूरवीरों पर विजय कैसे होगी?
भीष्म, द्रोण, जयद्रथ, कर्ण तथा और भी जितने शूरवीर हैं वे सब मेरे द्वारा पहले से ही मारे हुए हैं। उन मेरे द्वारा मारे हुए शूरवीरों को ही तू मार। अतः तू भयभीत मत हो और युद्ध कर। युद्ध में तू सम्पूर्ण शत्रुओं को जीतेगा।।34।।
इसके बाद क्या हुआ संजय?
संजय बोले-भगवान् केशव के ऐसे वचनों को सुनकर भय से काँपते हुए अर्जुन हाथ जोड़कर नमस्कार करके और अत्यन्त भयभीत होकर फिर प्रणाम करके गद्गद वाणी से भगवान् कृष्ण की स्तुति करने लगे।।35।।
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