गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास
ग्यारहवाँ अध्याय
हमारे पक्ष के मुख्य योद्धाओं के सहित भीष्म, द्रोण और कर्ण भी आपमें प्रविष्ट हो रहे हैं। राजाओं के समुदायों के सहित धृतराष्ट्र वे सब-के-सब पुत्र आपके विकराल दाढ़ों के कारण भयंकर मुखों में बड़ी तेजी से प्रवेश कर रहे हैं। उनमें से कई-एक तो चूर्ण हुए सिरोंसहित आपके दाँतों के बीच में फँसे हुए दीख रहे हैं।।26-27।। जैसे नदियों के बहुत-से जल के प्रवाह स्वाभाविक ही समुद्र की तरफ दौड़ते हैं, ऐसे ही मनुष्यलोक के वे भीष्म, द्रोण आदि महान् शूरवीर आपके प्रज्वलित मुखों में प्रवेश कर रहे हैं। जैसे पतंगे मोहवश अपने नाश के लिये बड़ी तेजी से दौड़ते हुए प्रज्वलित अग्नि में प्रविष्ट होते हैं, ऐसे ही ये दुर्योधन आदि सब लोग मोहवश अपना नाश करने के लिये बड़ी तेजी से दौड़ते हुए आपके मुखों में प्रविष्ट हो रहे हैं; और आप भी अपने प्रज्वलित मुखों के द्वारा सबको खाते हुए चारों तरफ से बार-बार चाट रहे हैं। हे विष्णो! आपका उग्र प्रकाश अपने तेज से सम्पूर्ण जगत् को परिपूर्ण करके सबको संतप्त कर रहा है।।28-30।। हे देवश्रेष्ठ! आपको नमस्कार है। आप प्रसन्न होइये। आदिरूप आपको मैं तत्त्व से जानना चाहता हूँ। मुझे यह बताइये कि उग्ररूपवाले आप कौन हैं? आप यहाँ क्यों आये हैं भगवन्? |