गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 54

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

छठा अध्याय

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ऐसे आसन से भी किस भाव से बैठना चाहिये?
जिसका अन्तःकरण राग-द्वेष आदि द्वन्द्वों से रहित है, जो भय-रहित है और जो ब्रह्मचर्य-व्रत का पालन करता है, ऐसा सावधान योगी मन को संसार से हटाकर मेरे में लगाता हुआ मेरे परायण होकर बैठे।।14।।

इसका फल क्या होगा?
इस प्रकार अपने मन को निरन्तर मेरे में लगाते हुए वश में किये हुए मनवाले योगी को मेरे में रहने वाली निर्वाण परमा शान्ति की प्राप्ति हो जाती है।।15।।

इस प्रकार से ध्यान करने वाले तो कई होते हैं, पर उन सबका ध्यानयोग सिद्ध क्यों नहीं होता भगवन्?
हे अर्जुन! अधिक खाने वाले का और बिलकुल न खाने वाले का तथा अधिक सोने वाले और बिलकुल न सोनेवाले का यह योग सिद्ध नहीं होता।।16।।

तो फिर यह योग किसका सिद्ध होता है?
जिसका आहार (भोजन) और विहार (घूमना-फिरना) यथोचित है, जिसकी कर्मों में चेष्टा यथोचित है और जिसका सोना-जागना भी यथोचित है, उसी का यह दुःखों का नाश करने वाला योग सिद्ध होता है।।17।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
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